पतिव्रता का अंग (36-38) | गोपीचंद तथा भरथरी की कथा
वाणी नं. 36-37-38:- गरीब, गोपीचंद अरु भरथरी, पतिब्रता हैं दोइ। गोरख से सतगुरु मिलें, पत्थर पाहन ढोइ।।36।।गरीब, बारह बरस बिसंभरी, अलवर किला चिनाई। सतगुरु शब्दों...