- भक्त शेख फरीद की कथा
- मृत लड़के कमाल को जीवित करना
- शेखतकी की मृत लड़की कमाली को जीवित करना
- सिकंदर लोधी बादशाह का असाध्य जलन का रोग ठीक करना
- स्वामी रामानंद जी को जीवित करना
भक्त शेख फरीद की कथा
भक्त फरीद जी का जन्म मुसलमान धर्म में शेख कुल में हुआ। शेख फरीद बचपन में बहुत चंचल थे। गली में खेलने जाता था तो बच्चों की पिटाई कर देता। उलाहने आते, माता दुःखी हो जाती थी। माता ने विचार किया कि फरीद को खजूर बहुत प्रिय है। इसे निमाज करने की कहती हूँ। माता ने योजना अनुसार फरीद से कहा कि बेटा! अल्लाह की निमाज किया कर। फरीद बोला कि अल्लाह (प्रभु) क्या देगा? माता ने कहा कि अल्लाह खजूर देता है। फरीद बोला कि बता कब करनी है निमाज? माता जब घर के कार्य में व्यस्त होती थी तो फरीद बाहर भाग जाता था। माता ने वही समय निमाज के लिए बताया। एक चद्दर बिछा दी तथा कहा कि आँखें बंद करके अल्लाह खजूर दे, अल्लाह खजूर दे। ऐसे करते रहना। माता ने एक वृक्ष के नीचे चद्दर बिछाई और कहा कि जब तक तेरे ऊपर धूप न आए, आँखें बंद रखना और निमाज करते रहना। जब फरीद आँखें बंद कर लेता तो माता ताड़ वृक्ष के पत्ते पर खजूर रखकर चद्दर के एक कोने के नीचे रख देती थी। फरीद ने धूप आने पर आँखें खोली। देखा तो खजूर नहीं मिला। उठकर माता के पास आया। बोला आपने झूठ बोला, मैं कभी निमाज नहीं करूँगा। अल्लाह ने खजूर नहीं दिया। माता जी ने कहा कि बेटा! अल्लाह गुप्त रूप में सब कार्य करता है। चद्दर के नीचे देख, खजूर अवश्य मिलेगा। फरीद ने चद्दर उठाई तो सच में खजूर रखा था। खुशी-खुशी खजूर खाया। माता से कहा कि अब कब करनी है निमाज।
माता बोली कि मैं बता दिया करूँगी जब निमाज करनी होगी। प्रतिदिन काम के समय चद्दर बिछा देती। फरीद आँखें बंद करके बैठ जाता। माता खजूर रख दिया करती। एक दिन माता जी खजूर रखना भूल गई। फरीद ने धूप आते ही आँखें खोली। खजूर (टटोली) खोजी। चद्दर के नीचे खजूर प्रतिदिन की तरह रखी थी। फरीद खजूर खाता हुआ घूम रहा था। माता विचार करने लगी कि आज मेरे से बड़ी गलती हो गई। फरीद अब कभी नहीं मानेगा। परेशान करेगा। फरीद खजूर खाता-खाता माता जी के पास आया। माता ने पूछा कि बेटा! खजूर कहाँ से लाया? बालक फरीद बोला! माँ अल्लाह तो निमाज के वक्त प्रतिदिन खजूर देता है। माँ बोली कि सच बता। माँ सच बताता हूँ। देख! इस पत्ते में खजूर अल्लाह रखकर जाता है। माता को भी समझ आई कि यह सामान्य बालक नहीं है। बड़ा होकर फरीद घर त्यागकर एक फक्कड़-फकीर का शिष्य बनकर आश्रम में रहने लगा। वह फकीर (साधु) सिद्धि प्राप्त था। हुक्का पीता था। आश्रम में सात शिष्य थे। प्रतिदिन एक सेवक सब सेवा करता था। गुरूजी का भोजन बनाना। भोजन के तुरंत बाद हुक्का भरकर गुरूजी को देना। कपड़े धोना। शेख फरीद दिलोजान से गुरूजी की तथा आश्रम की साफ-सफाई की सेवा करता था। गुरूजी शेख फरीद की बहुत प्रशंसा करते थे जो अन्य शिष्यों को खटकती थी।
उन सबने मिलकर शेख फरीद को गुरूजी की नजरों से गिराने का विचार किया। षड़यंत्र रचा कि बारिश का मौसम है। गुरूजी भोजन के तुरंत बाद हुक्का पीते हैं। यदि हुक्का भरने में देरी कोई शिष्य कर देता तो उसे डंडों से पीटता था। कई दिन तक सेवा से वंचित कर देता था। शेख फरीद कभी गलती में नहीं आए थे। एक दिन शेख फरीद ने भोजन बनाया। अग्नि प्रतिदिन की तरह तैयार कर रखी थी। भोजन गुरूजी को खिलाया। चिलम में आग रखने के लिए चुल्हे के पास गया तो देखा आग बुझ चुकी थी। आग नहीं थी। गुरूजी नाराज न हो जाएँ, इस भय से शेख फरीद दौड़ा-दौड़ा गाँव में गया जो आधा कि.मी. की दूरी पर थी। एक माई चुल्हे में अग्नि सुलगाकर रोटी बना रही थी।
शेख फरीद ने कहा, माई! आग दे। गुरू जी का हुक्का भरना है। हमारी आग बंद हो गई है। गुरूजी नाराज हो गए तो जीवन नरक बन जाएगा। माई ने दुःखी होकर फूँक मार-मारकर अग्नि जलाई थी। मौसम बारिश का था। माई बोली कि आग आँखें फूटने से मिलती है। मैंने आँखें फुड़वाकर अग्नि तैयार की है। तू भी आँखें फूड़वा, तब आग मिलेगी। शेख फरीद को अपनी एक आँख में चिमटा मारा। आँख निकालकर माई के पास रख दी और बोला कि लो माई! आँख फोड़ ली है। अब तो आग दे दो। वह औरत घबरा गई। उसे पता था कि वह फकीर सिद्ध पुरूष है। वह मुझे हानि करेगा। तुरंत चुल्हे से अग्नि निकालकर बाहर कर दी। शेख फरीद आग चिलम में रखकर दौड़ा। फकीर दो आवाज लगाता था। कहता था कि हुक्का लाओ। शिष्य का नाम पुकारता था। तीसरी बार तो डंडा लेकर मारने चलता था।
गुरूजी ने पहली आवाज लगाई। तब शेख फरीद आधे रास्ते में था। दूसरी लगाई, तब आश्रम में प्रवेश कर चुका था। गुरूजी ने दूसरी बार कहा कि हे शेख फरीद! कहाँ मर गया। शेख फरीद बोला कि आ गया गुरूजी। शेख फरीद ने फूटी आँख पर कपड़ा बाँध रखा था। गुरूजी को बताया कि बारिश की वजह से आश्रम में आग बुझ गई थी। दौड़कर नगरी से लाया हूँ। गुरूजी को अंधेरे में कुछ कम दिखाई देता था। शेख फरीद की आँख पर कपड़ा बँधा देखकर पूछा कि आँख को क्या हो गया? फरीद बोला कि कुछ नहीं गुरूजी। आपकी कृपा से सब ठीक है। गुरूजी ने भी अधिक ध्यान नहीं दिया। सुबह वह औरत शेख फरीद की आँख एक मिट्टी के ढ़क्कन पर रखकर आश्रम लाई। फकीर जी से अपनी गलती की क्षमा माँगी। बताया कि आपका शिष्य कल शाम को आग लेने गया था। बोला माई आग दे दे। आश्रम की आग बुझ गई है। गुरूजी भोजन खाते ही हुक्का पीते हैं। हुक्का भरने में देरी हो जाने पर नाराज हो जाते हैं। कई दिन सेवा नहीं देते हैं। यदि गुरूजी नाराज हो गए तो मेरा जीवन नरक बन जाएगा। महिला बोली कि मैंने बड़ी मुश्किल से आग तैयार की थी। मेरी आँख धुँएँ से लाल हो गई थी। फँूक मार-मारकर परेशान थी। मैंने भक्त से कह दिया कि आग आँखें फुड़वाकर आग बनती है। आँखें फुड़वा, तब आग मिलेगी। इसने सच में चिमटे से आँख निकालकर रख दी। बोला कि यदि गुरूजी नाराज हो गए तो आँखें किस काम की? यह आँख मैं लेकर आई हूँ। गुरूजी ने शेख फरीद को बुलाया। कहा कि आँख का कपड़ा खोल। कपड़ा खोला तो आँख स्वस्थ थी। परंतु कुछ छोटी थी। माई ने यह सब देखा तो गाँव जाकर फकीर की प्रसिद्धि की कि बड़ा चमत्कारी साधु है। मेरे सामने आँख ठीक कर दी। गुरूजी ने शेख फरीद को सीने से लगाया। आशीर्वाद दिया कि तेरी साधना सफल हो।
गुरूजी की मृत्यु के पश्चात् शेख फरीद ने आश्रम त्याग दिया। गुरूजी ने तप करने से मोक्ष बताया था। जैसा गुरूजी का आदेश था, शेख फरीद पूरी निष्ठा से पालन कर रहा था। बारह वर्ष तक तो कुंए में उल्टा लटक-लटककर तप किया। उस दौरान केवल सवामन (पचास किलोग्राम) अन्न खाया था जो नाम मात्र था। शरीर अस्थिपिंजर बन गया था। शेख फरीद कुछ देर कुंए से बाहर बैठता था। एक दिन (कागों) कौओं ने उसे मृत जानकर उसकी आँखें खाने के लिए उसके माथे पर बैठ गए। शेष शरीर पर माँस नहीं था। फरीद बोला! हे कौओ! आप मेरी दो आँखें छोड़कर शरीर का सारा माँस खा लो। मैं परमात्मा देखना चाहता हूँ। इसलिए मेरी आँखें-आँखें छोड़ दो। जब फरीद बोला तो कौवे उड़ गए। शेख फरीद रस्से से पैर बाँधकर प्रतिदिन की तरह कुँए में लटक गया। परमात्मा कबीर जी एक जिंदा बाबा के वेश में कँुए पर आए तथा रस्सा पकड़कर फरीद को कँुए से निकालने लगे। शेख फरीद बोला भाई! आप मुझे ना छेड़। तू अपना काम कर, मैं अपना काम कर रहा हूँ। परमात्मा बोले कि आप क्या कर रहे हो? फरीद बोला कि मैं परमात्मा का दर्शन करने के लिए घोर तप कर रहा हूँ। परमात्मा ने कहा कि मैं ही परमात्मा अल्लाह अकबर हूँ। फरीद बोला! भाई मजाक मत कर। परमात्मा बेचगुन (निराकार) है। वह मानुष रूप में नहीं आता। परमात्मा ने कहा कि आप कहते हैं कि परमात्मा निराकार है। दूसरी ओर कह रहे हो कि परमात्मा के दर्शन (दीदार) के लिए घोर तप कर रहा हूँ। कहते हैं घाम का और ज्ञान का तो चमका-सा ही लगता है। शेख फरीद ने चरण पकड़ लिए। तत्त्वज्ञान समझा। कबीर परमात्मा के द्वारा बताई साधना करके कल्याण करवाया।
वाणी नं. 1217-1248 का सरलार्थ:– इन वाणियों में पहले वाला प्रकरण संक्षिप्त में कहा है।
गरीब, ऐसी जननी मात सत्य, पुत्र देत उपदेश। और नार व्यभिचारिणी, यौं भाखत हैं शेष।।1217।।
गरीब, समुद्र तौ नघ देत है, इन्द्र देत है स्वांति। नारी पुत्र देत हैं, ध्रुव कैसी लगमांति।।1218।।
गरीब, सात धात पथ्वी दई, सात अन्न प्रबीन। व ृ क्षा नदियौं फल दिये, यौ नर मूढ कुलीन।।1219।।
गरीब, जिन पुत्र नहीं जगि करी, पिण्ड प्रदान पुरान। नाहक जग में अवतरे, जिनसैं नीका श्वान।।1220।।
गरीब, बिना धर्म क्या पाईये, चैदह भुवन बिचार। चमरा चूक्या चाकरी, स्वर्गहूं में बेगार।।1221।।
गरीब, स्वर्ग स्वर्ग सब जीव कहैं, स्वर्ग मांहि बड दुःख। जहां चैरासी कुंड हैं, थंभ बलैं ज्यूं लुक।।1222।।
गरीब, कुंड पर्या निकसैं नहीं, स्वर्ग न चितवन कीन। धर्मराय के धाम में, मार अधिक बेदीन।।1223।।
गरीब, करि साहिब की बंदगी, सुमरण कलप कबीर। जमकै मस्तक पांव दे, जाय मिलै धर्मधीर।।1224।।
गरीब, धर्मधीर जहां पुरुष हैं, ताकी कलप कबीर। सकल प्रान में रमि रह्या, सब पीरन शिर पीर।।1225।।
गरीब, धर्म धजा फरकंत हैं, तीनौं लोक तलाक। पापी चुनि चुनि मारिये, मुंख में दे दे राख।।1226।।
गरीब, पापीकै परदा नहीं, शिब पर कलप करंत। माता कूं घरणी कहै, भस्मागिर भसमंत।।1227।।
गरीब, भसम हुये अप कलपसैं, शिबकूं कछु न कीन। इस दुनियां संसार में, कर्म भये ल्यौलीन।।1228।।
गरीब, जिन्हौं दान दत्तब किया, तिन पाई सब रिद्ध। बिना दानि व्याघर भये, तास पजाबै गद्ध।।1229।।
गरीब, कर दिन्ह्ये कुरबांनजां नयन नाक मुखद्वार। पीछैं कुछ राख्या नहीं, नर मानुष अवतार।।1230।।
गरीब, दान दया दरबेश दिल, बैराट फटक जो दिल। दानी ज्ञानी निपजहीं, सूंम सदा ज्यूं सिल।।1231।।
गरीब, सूंम सुसरसैं शाख क्या, हनिये छाती तोर। असी गंज बांटे नहीं, कीन्ह्ये गारत गोर।।1232।।
गरीब, हरिचंद ऐसी यज्ञ करी, राजपाट स्यूं देह। संगही तारालोचनी, काशी नगर बिकेह।।1233।।
गरीब, मरघट का मंगता किया, मुर्द पीर चिंडाल। डायन तारालोचनी, राजा पुत्र काल।।1234।।
गरीब, उस डायन कूं तोरि है, हरिचंद हाथ खड्ग। स्वर्ग मत्यु पाताल में, ऐसी और न जगि।।1235।।
गरीब, मोरध्वज मेला किया, जगि आये जगदीश। ताम्रध्वज आरा धर्या, अरपन कीन्ह्या शीश।।1236।।
गरीब, अंबरीष आनंद में, यज्ञ रूप सब अंग। दुर्बासाकूं दव नहीं, चक्र सुदर्शन संग।।1237।।
गरीब, राजा अधिक पुरुरवा, होमि दई जिन देह। तीन लोक साका भया, अमर अभय पद नेह।।1238।।
गरीब, मरुत यज्ञ अधकी करी, पथ्वी सर्वस्व दान। अनंत कोटि राजा गये, पद चीन्हत प्रवान।।1239।।
गरीब, नगर पुरी भदरावती, जोबनाथ का राज। श्यामकर्ण जिस कै बंध्या, खूंहनि अनगिन साज।।1240।।
गरीब, गये भीम जहां भारथी, श्याम कर्ण कौं लैंन। भारथ करि घोरा लिया, तास यज्ञ तहां दैंन।।1241।।
गरीब, गोरख जोगी ज्ञान यज्ञ करी, तत्तवेत्ता तरबीत। सतगुरु सें भेटा भया, हो गये शब्दातीत।।1242।।
गरीब, सेऊ समन जग करी, शीश भेद करि दीन। सतगुरु मिले कबीर से, शीश चढे फिरि सीन।।1243।।
गरीब, कबीर यज्ञ जैसी करी, ऐसी करै न कोय। नौलख बोडी बिस्तरी, केशव केशव होय।।1244।।
गरीब, यज्ञ करी रैदास कूं, धरै सात सै रूप। कनक जनेऊ काढियां, पातशाह जहां भूप।।1245।।
गरीब, तुलाधार कूं जग करी, नामदेव प्रवान। पलरे में सब चढि गये, ऊठ्या नहीं अमान।।1246।।
गरीब, पीपा तौ पद में मिल्या, कीन्ही यज्ञ अनेक। बुझ्या चंदोवा बेगही, अबिगत सत्य अलेख।।1247।।
गरीब, तिबरलंग तौ जग करी, एक रोटी रस रीति। बिन दीन्ही नहीं पाईये, दान ज्ञान सें प्रीति।।1248।।
“मृत लड़के कमाल को जीवित करना”
शेखतकी महाराजा सिकंदर से मुख चढ़ाए फिर रहा था। सिकंदर ने पूछा कि क्या बात है पीर जी? शेखतकी ने कहा कि क्या तुझे बात नहीं मालूम? सिकंदर ने पूछा कि क्या बात है? शेखतकी ने कहा कि इस कबीर काफिर को साथ किसलिए रखा है? सिकंदर ने कहा कि ये तो भगवान (अल्लाह) है। शेखतकी ने कहा कि अच्छा अल्लाह अब आकार में आने लग गया। अल्लाह कैसे है? सिकंदर ने कहा कि पहले तो अल्लाह ऐसे कि मेरा रोग ऐसा था कि किसी से भी ठीक नहीं हो पा रहा था। इस कबीर प्रभु ने हाथ ही लगाया था मैं स्वस्थ हो गया। शेखतकी ने कहा कि ये जादूगर होते हैं। सिकंदर ने फिर कहा दूसरा भगवान ऐसे है कि मैंने उनके गुरुदेव का सिर काट दिया था और उन्होंने उसे मेरी आँखों के सामने तुरंत जीवित कर दिया। शेखतकी ने कहा कि अगर यह कबीर अल्लाह है तो मैं इसकी परीक्षा लूँगा। यदि कबीर जी मेरे सामने कोई मुर्दा जीवित करे तो इसे अल्लाह मान लूँगा। नहीं तो दिल्ली जाकर मैं पूरे मुसलमान समाज को कह दूँगा कि यह राजा हिन्दू हो गया है। सिकंदर लोधी डर गया कि कहीं ऐसा न हो कि यह जाते ही राज पलट दे। (राज को देने वाला पास बैठा है और उस मूर्ख से डर लगता है।) राजा ने शेखतकी से कहा कि आप कैसे प्रसन्न होंगे। शेखतकी ने कहा कि मैं तब प्रसन्न होऊँगा जब मेरे सामने यह कबीर कोई मुर्दा जीवित कर दे। साहेब से प्रार्थना हुई तो कबीर साहेब ने कहा कि ठीक है। (कबीर साहेब ने सोचा कि यह अनाड़ी आत्मा शेखतकी है। अगर यह मेरी बात मान गया तो आधे से ज्यादा मुसलमान इसकी बात स्वीकार करते हैं। क्योंकि यह दिल्ली के बादशाह का पीर है और अगर यह सही ढंग से मुसलमानों को बता देगा तो बेचारी भोली आत्माएँ इन गुरूओं पर आधारित होती हैं।)
इसलिए कहा कि ठीक है शेखतकी ढँूढ़ ले कोई मुर्दा। सुबह एक 10-12 वर्ष की आयु के लड़के का शव पानी में तैरता हुआ आ रहा था। शेखतकी ने कहा कि वह आ रहा है मुर्दा, इसे जिन्दा कर दो। कबीर साहेब ने कहा पहले आप प्रयत्न करो, कहीं फिर पीछे नम्बर बनाओ। उपस्थित मन्त्रिायों तथा सैनिकों ने कहा कि पीर जी आप कोशिश करके देख लो। शेखतकी जन्त्र-मन्त्र करता रहा। इतने में वह मुर्दा तीन फर्लांग आगे चला गया। शेखतकी ने कहा कि यह कबीर चाहता था कि यह बला सिर से टल जाए। कहीं मुर्दे जीवित होते हैं? मुर्दे तो कयामत के समय ही जीवित होते हैं। कबीर साहेब बोले महात्मा जी आप बैठ जाओ, शान्ति करो। कबीर साहेब ने उस मुर्दे को हाथ से वापिस आने का संकेत किया। बारह वर्षीय बच्चे का मृत शरीर दरिया के पानी के बहाव के विपरित चलकर कबीर जी के सामने आकर रूक गया। पानी की लहर नीचे-नीचे जा रही और शव ऊपर रूका था। कबीर साहेब ने कहा कि हे जीवात्मा जहाँ भी है कबीर हुक्म से मुर्दे में प्रवेश कर और बाहर आ। कबीर साहेब ने इतना कहा ही था कि शव में कम्पन हुई तथा जीवित होकर बाहर आ गया। कबीर साहेब के चरणों में दण्डवत् प्रणाम किया। “बोलो कबीर परमेश्वर की जय”
सर्व उपस्थित जनों ने कहा कि कबीर साहेब ने तो कमाल कर दिया। उस लड़के का नाम कमाल रख दिया। लड़के को अपने साथ रखा। अपने बच्चे की तरह पालन-पोषण किया और नाम दिया। उसके बाद दिल्ली में आ गए। सभी को पता चला कि यह लड़का जो इनके साथ है यह परमेश्वर कबीर साहेब ने जीवित किया है। दूर तक बात फैल गई। शेखतकी की तो माँ सी मर गई सोचा यह कबीर अच्छा दुश्मन हुआ। इसकी तो और ज्यादा महिमा हो गई।
शेखतकी की इष्र्या बढ़ती ही चली गई। उसकी तेरह वर्षीय लड़की को मृत्यु पश्चात् कब्र में जमीन में दबा रखा था। शेखतकी ने कहा यदि कबीर मेरी लड़की को जो कब्र में दफना रखी है। अगर उसको जीवित करेगा तो मैं इसे अल्लाह मान लूँगा।
“शेखतकी की मृत लड़की कमाली को जीवित करना”
शेखतकी ने देखा कि यह कबीर तो किसी प्रकार भी काबू नहीं आ रहा है। तब शेखतकी ने जनता से कहा कि यह कबीर तो जादूगर है। ऐसे ही जन्त्र-मन्त्र दिखाकर इसने बादशाह सिकंदर की बुद्धि भ्रष्ट कर रखी है। सारे मुसलमानों से कहा कि तुम मेरा साथ दो, वरना बात बिगड़ जाएगी। भोले मुसलमानों ने कहा पीर जी हम तेरे साथ हैं, जैसे तू कहेगा ऐसे ही करेंगे। शेखतकी ने कहा इस कबीर को तब प्रभु मानेंगे जब मेरी लड़की को जीवित कर देगा जो कब्र में दबी हुई है।
पूज्य कबीर साहेब से प्रार्थना हुई। कबीर साहेब ने सोचा यह नादान आत्मा ऐसे ही मान जाए। {क्योंकि ये सभी जीवात्माएँ कबीर साहेब के बच्चे हैं। यह तो काल ने (मजहब) धर्म का हमारे ऊपर कवर चढ़ा रखा है। एक-दूसरे के दुश्मन बना रखे हैं।} शेखतकी की लड़की का शव कब्र में दबा रखा था। शेखतकी ने कहा कि यदि मेरी लड़की को जीवित कर दे तो हम इस कबीर को अल्लाह स्वीकार कर लेंगे और सभी जगह ढिंढ़ोरा पिटवा दूँगा कि यह कबीर जी भगवान है। कबीर साहेब ने कहा कि ठीक है। वह दिन निश्चित हुआ। कबीर साहेब ने कहा कि सभी जगह सूचना दे दो, कहीं फिर किसी को शंका न रह जाए। हजारों की संख्या में वहाँ पर भक्त आत्मा दर्शनार्थ एकत्रित हुई। कबीर साहेब ने कब्र खुदवाई। उसमें एक बारह-तेरह वर्ष की लड़की का शव रखा हुआ था। कबीर साहेब ने शेखतकी से कहा कि पहले आप जीवित कर लो। सभी उपस्थित जनों ने कहा है कि महाराज जी यदि इसके पास कोई ऐसी शक्ति होती तो अपने बच्चे को कौन मरने देता है? अपने बच्चे की जान के लिए व्यक्ति अपना तन मन धन लगा देता है। हे दीन दयाल आप कृपा करो। पूज्य कबीर परमेश्वर ने कहा कि हे शेखतकी की लड़की जीवित हो जा। तीन बार कहा लेकिन लड़की जीवित नहीं हुई। शेखतकी ने तो भंगड़ा पा दिया। नाचे-कूदे कि देखा न पाखण्डी का पाखंड पकड़ा गया। कबीर साहेब उसको नचाना चाहते थे कि इसको नाचने दे।
कबीर, राज तजना सहज है, सहज त्रिया का नेह। मान बड़ाई ईष्र्या, दुर्लभ तजना ये।।
मान-बड़ाई, ईष्र्या का रोग बहुत भयानक है। अपनी लड़की के जीवित न होने का दुःख नहीं, कबीर साहेब की पराजय की खुशी मना रहा था। कबीर साहेब ने कहा कि बैठ जाओ महात्मा जी, शान्ति रखो। कबीर साहेब ने आदेश दिया कि हे जीवात्मा जहाँ भी है कबीर आदेश से इस शव में प्रवेश करो और बाहर आओ।
कबीर साहेब का कहना ही था कि इतने में शव में कम्पन हुआ और वह लड़की जीवित होकर बाहर आई, कबीर साहेब के चरणों में दण्डवत् प्रणाम किया।(बोलो सतगुरु देव की जय।)
उस लड़की ने डेढ घण्टे तक कबीर साहेब की कृपा से प्रवचन किए। कहा हे भोली जनता ये भगवान आए हुए हैं। पूर्ण ब्रह्म अन्नत कोटि ब्रह्माण्ड के परमेश्वर हैं। क्या तुम इसको एक मामूली जुलाहा(धाणक) मान रहे हो। हे भूले-भटके प्राणियो! ये आपके सामने स्वयं परमेश्वर आए हैं। इनके चरणों में गिरकर अपने जन्म-मरण का दीर्घ रोग कटवाओ और सत्यलोक चलो। जहाँ पर जाने के बाद जीवात्मा जन्म-मरण के चक्कर से बच जाती है। कमाली ने बताया कि इस काल के जाल से बन्दी छोड़ कबीर साहेब के बिना कोई नहीं छुटवा सकता। चाहे हिन्दू पद्यति से तीर्थ-व्रत, गीता-भागवत, रामायण, महाभारत, पुराण, उपनिषद्ध, वेदों का पाठ करना, राम, कृष्ण, ब्रह्मा-विष्णु-शिव, शेराँवाली(आदि माया, आदि भवानी, प्रकृति देवी), ज्योति निरंजन की उपासना भी क्यों न करें, जीव चैरासी लाख प्राणियों के शरीर में कष्ट से नहीं बच सकता और मुसलमान पद्यति से भी जीव काल के जाल से नहीं छूट सकता। जैसे रोजे रखना, ईद बकरीद मनाना, पाँच वक्त नमाज करना, मक्का-मदीना में जाना, मस्जिद में बंग देना आदि सर्व व्यर्थ है। कमाली ने सर्व उपस्थित जनों को सम्बोधित करते हुए अपने पिछले जन्मों की कथा सुनाई जो उसे कबीर साहेब की कृपा से याद हो आई थी। जो कि आप पूर्व पढ़ चुके हो।
कबीर साहेब ने कहा कि बेटी अपने पिता के साथ जाओ। वह लड़की बोली मेरे वास्तविक पिता तो आप हैं। यह तो नकली पिता है। इसने तो मैं मिट्टी में दबा दी थी। मेरा और इसका हिसाब बराबर हो चुका है। सभी उपस्थित व्यक्तियों ने कहा कि कबीर परमेश्वर ने कमाल कर दिया। कबीर साहेब ने लड़की का नाम कमाली रख दिया और अपनी बेटी की तरह रखा और नाम दिया। उपस्थित व्यक्तियों ने हजारों की संख्या में कबीर परमेश्वर से उपदेश ग्रहण किया। अब शेखतकी ने सोचा कि यह तो और भी बात बिगड़ गई। मेरी तो सारी प्रभुता गई।
“सिकंदर लोधी बादशाह का असाध्य जलन का रोग ठीक करना”
एक बार दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लोधी को जलन का रोग हो गया। जलन का रोग ऐसा होता है जैसे किसी का आग में हाथ जल जाए उसमें पीड़ा बहुत होती है। जलन के रोग में कहीं से शरीर जला दिखाई नहीं देता है परन्तु पीड़ा अत्यधिक होती है। उसको जलन का रोग कहते हैं। जब प्राणी के पाप बढ़ जाते हैं तो दवाई भी व्यर्थ हो जाती हैं। दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लौधी के साथ भी वही हुआ। सभी प्रकार की औषधि सेवन की। बड़े-बड़े वैद्य बुला लिए और मुँह बोला इनाम रख दिया कि मुझे ठीक कर दो, जो माँगोगे वही दूँगा। दुःख में व्यक्ति पता नहीं क्या संकल्प कर लेता है? सर्व उपाय निष्फल हुए। उसके बाद अपने धार्मिक काजी, मुल्ला, संतों आदि सबसे अपना आध्यात्मिक इलाज करवाया। परन्तु सब असफल रहा। {जब हम दुःखी हो जाते हैं तो हिन्दू और मुसलमान नहीं रहते। फिर तो कहीं पर रोग कट जाए, वही पर चले जाते हैं। वैसे तो हिन्दू कहते हैं कि मुसलमान बुरे और मुसलमान कहते हैं कि हिन्दू बुरे और बीमारी हो जाए तो फिर हिन्दू व मुसलमान नहीं देखते। जब कष्ट आए तब तो कोई बुरा नहीं। बुरा कोई नहीं है। जो मुसलमान बुरे हैं वे बुरे हैं और जो हिन्दू बुरे हैं वे बुरे भी हैं और दोनों में अच्छे भी है। हर मज़हब में अच्छे और बुरे व्यक्ति होते हैं। लेकिन हम जीव हैं। हमारी कोई जाति व्यवस्था नहीं है। हमारी जीव जाति है हमारा धर्म मानव है-परमात्मा को पाना है।} हिन्दू वैद्य तथा आध्यात्मिक संत भी बुलाए, स्वयं भी उनसे जाकर मिला और सबसे आशीर्वाद व जंत्र-मंत्र करवाए, परन्तु सर्व चेष्टा निष्फल रही।
किसी ने बताया कि काशी शहर में एक कबीर नाम का महापुरूष है। यदि वह कृपा कर दे तो आपका दुःख निवारण अवश्य हो जाएगा।
जब बादशाह सिकंदर ने सुना कि एक काशी के अन्दर महापुरूष रहता है तो उसको कुछ-कुछ याद आया कि वह तो नहीं है जिसने गाय को भी जीवित कर दिया था। हजारों अंगरक्षकों सहित दिल्ली से काशी के लिए चल पड़ा। बीर सिंह बघेला काशी नरेश पहले ही कबीर साहेब की महिमा और ज्ञान सुनकर कबीर साहेब के शिष्य हो चुके थे और पूर्ण रूप से अपने गुरुदेव में आस्था रखते थे। उनको कबीर साहेब की महिमा का ज्ञान था क्योंकि कबीर परमेश्वर वहाँ पर बहुत लीलाएँ कर चुके थे। जब सिकंदर लोधी बनारस(काशी) गया तथा बीर सिंह से कहा बीर सिंह मैं बहुत दुःखी हो गया हूँ। अब तो आत्महत्या ही शेष रह गई है। यहाँ पर कोई कबीर नाम का संत है? आप तो जानते होंगे कि वह कैसा है? इतनी बात सिकंदर बादशाह के मुख से सुनी थी। काशी नरेश बीर सिंह की आँखों में पानी भर आया और कहा कि अब आप ठीक स्थान पर आ गए। अब आपके दुःख का अंत हो जाएगा। बादशाह सिकंदर ने पूछा कि ऐसी क्या बात है? बीर सिंह ने कहा कि वह कबीर जी स्वयं भगवान आए हुए हैं। परमेश्वर स्वरूप हैं। यदि उनकी दयादृष्टि हो गई तो आपका रोग ठीक हो जाएगा। राजा सिकंदर ने कहा कि जल्दी बुला दो। काशी नरेश बीरदेवसिंह बघेल ने विनम्रता से प्रार्थना की कि आपकी आज्ञा शिरोधार्य है, आदेश भिजवा देता हूँ। लेकिन ऐसा सुना है कि संतो को बुलाया नहीं करते। यदि वे आ भी गए और रजा नहीं बख्शी तो भी आने का कोई लाभ नहीं। बाकी आपकी ईच्छा। सिकंदर ने कहा कि ठीक है मैं स्वयं ही चलता हूँ। इतनी दूर आ गया हूँ वहाँ पर भी अवश्य चलूँगा।
शाम का समय हो गया था। बीर सिंह को पता था कि इस समय साहेब कबीर जी अपने औपचारिक गुरुदेव स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में ही होते हैं। यह समय परमेश्वर कबीर जी का वहाँ मिलने का है। बीर देव सिंह बघेल काशी नरेश तथा सिकंदर लोधी दिल्ली के बादशाह दोनों, स्वामी रामानन्द जी के आश्रम के सामने खड़े हो गए। वहाँ जाकर पता चला कि कबीर साहेब अभी नहीं आए हैं, आने ही वाले हैं। बीर सिंह अन्दर नहीं गए। बाहर सेवक खड़ा था उससे ही पूछा। सिकंदर ने कहा कि ‘‘तब तक आश्रम में विश्राम कर लेते हैं।’’ राजा बीर सिंह ने स्वामी रामानन्द जी के द्वारपाल सेवक से कहा कि रामानन्द जी से प्रार्थना करो कि दिल्ली के बादशाह सिकंदर लौधी आपके दर्शन भी करना चाहते हैं और साहेब कबीर का इन्तजार भी आपके आश्रम में ही करना चाहते है। सेवक ने अन्दर जाकर रामानन्द जी को बताया कि दिल्ली के बादशाह सिकंदर लौधी आए हैं। रामानन्द जी मुसलमानों से घृणा करते थे। रामानन्द जी ने कहा कि मैं इन मलेच्छों (मुसलमानों) की शक्ल भी नहीं देखता। कह दो कि बाहर बैठ जाएगा। जब सिकंदर लोधी ने यह सुना तो क्रोध में भरकर (क्योंकि राजा में अहंकार बहुत होता है और वह दिल्ली का बादशाह) कहा कि यह दो कौड़ी का महात्मा दिल्ली के बादशाह का अनादर कर सकता है तो साधारण मुसलमान के साथ यह कैसा व्यवहार करता होगा? इसको मज़ा चखा दूँ। रामानन्द जी अलग आसन पर बैठे थे। सिकंदर लोधी ने जाकर रामानन्द जी की गर्दन तलवार से काट दी। वापिस चल पड़ा और फिर उसको याद आया कि मैं जिस कार्य के लिए आया था? और वह काम अब पूरा नहीं होगा। कहा कि बीर सिंह देख मैं क्या जुल्म कर बैठा? मेरे बहुत बुरे दिन हैं। चाहता हूँ अच्छा करना और होता है बुरा। कबीर साहेब के गुरुदेव की हत्या कर दी। अब वे कभी भी मेरे ऊपर दयादृष्टि नहीं करेंगे। मुझे तो यह दुःख भोग कर ही मरना पड़ेगा। मैं बहुत पापी जीव हूँ। यह कहता हुआ आश्रम से बाहर की ओर चल पड़ा। बीर सिंह अपने बादशाह के आगे क्या बोलता। ज्योंही आश्रम से बाहर आए, कबीर साहेब आते दिखाई दिए। बीर सिंह ने कहा कि महाराज जी मेरे गुरुदेव कबीर साहेब आ गए। ज्योंही कबीर साहेब थोड़ी दूर रह गए बीर सिंह ने जमीन पर लेटकर उनको दण्डवत् प्रणाम किया। अब सिकंदर बहुत घबराया हुआ था। {अगर उसने यह जुल्म नहीं किया होता तो वह दण्डवत् नहीं करता और दण्डवत् नहीं करता तो साहेब उस पर रजा भी नहीं बख्श पाते क्योंकि यह नियम होता है।
अति आधीन दीन हो प्राणी, ताते कहिए ये अकथ कहानी।
ऊँचे पात्र जल ना जाई, ताते नीचा हुजै भाई।
आधीनी के पास हैं पूर्ण ब्रह्म दयाल। मान बड़ाई मारिए बे अदबी सिर काल।।
कबीर परमेश्वर ने यहाँ पर एक तीर से दो शिकार किए। स्वामी रामानंद जी में धर्म भेद-भाव की भावना शेष थी, वह भी निकालनी थी। रामानंद जी मुसलमानों को हिन्दुओं से अभी भी भिन्न तथा हेय मानते थे। सिकंदर में अहंकार की भावना थी। यदि वह नम्र नहीं होता तो कबीर साहेब कृपा नहीं करते तथा सिकंदर स्वस्थ नहीं होता} बीर सिंह को देखकर तथा डरते हुए सिकंदर लौधी ने भी दण्डवत् प्रणाम किया। कबीर परमेश्वर जी ने दोनों के सिर पर हाथ रखा और कहा कि दो-2 नरेश आज मुझ गरीब के पास कैसे आए हैं? मुझ गरीब को कैसे दर्शन दिए? परमेश्वर कबीर जी ने अपना हाथ उठाया भी नहीं था कि सिकंदर का जलन का रोग समाप्त हो गया। सिकंदर लोधी की आँखों में पानी आ गया। (संत के सामने यह मन भाग जाता है और ये आत्मा ऊपर आ जाती है क्योंकि परमात्मा आत्मा का साथी है। ‘‘अन्तर्यामी एक तू आत्म के आधार।‘‘ आत्मा का आधार कबीर भगवान है।)
‘‘स्वामी रामानंद जी को जीवित करना’’
सिकंदर लोधी ने पैर पकड़ कर छोड़े नहीं और रोता ही रहा। परमेश्वर जानी जान होते हुए भी कबीर साहेब ने सिकन्दर लोधी दिल्ली के बादशाह से पूछा क्या बात है?। सिकंदर ने कहा कि दाता मैंने घोर अपराध कर दिया। आप मुझे क्षमा नहीं कर सकते। जिस काम के लिए मैं आया था वह असाध्य रोग तो आपके स्पर्श मात्र से ठीक हो गया। इस पापी को क्षमा कर दो। कबीर साहेब ने कहा क्षमा कर दिया। यह तो बता कि क्या हुआ? सिकंदर ने कहा कि आप क्षमा कर नहीं सकते। मैंने ऐसा पाप किया है। कबीर साहेब ने कहा कि क्षमा कर दिया। सिकंदर ने फिर कहा कि सच में माफ कर दिया? कबीर साहेब ने कहा कि हाँ क्षमा कर दिया। अब बता क्या कष्ट है? सिकंदर ने कहा कि दाता मुझ पापी ने गुस्से में आकर आपके गुरुदेव का सिर कलम कर दिया और फिर सारी कहानी बताई। कबीर साहेब बोले कोई बात नहीं। जो हुआ प्रभु इच्छा से ही हुआ है आप स्वामी रामानन्द जी का अन्तिम संस्कार करवा कर जाना नहीं तो आप निंदा के पात्र बनोगे। परमेश्वर कबीर साहेब जी नाराज नहीं हुए। सिकंदर लोधी ने बीर सिंह के मुख की और देखा और कहा कि बीर सिंह यह तो वास्तव में भगवान है। देखिए मैंने गुरुदेव का सिर काट दिया और कबीर जी को क्रोध भी नहीं आया। बीर सिंह चुप रहा और साथ-साथ हो लिया और मन ही मन में सोचता है कि अभी क्या है, अभी तो और देखना। यह तो शुरूआत है। परमेश्वर कबीर जी ने अन्दर जाकर देखा रामानंद जी का धड़ कहीं पर और सिर कहीं पर पड़ा था। शरीर पर चादर डाल रखी थी। कबीर साहेब ने अपने गुरुदेव के मृत शरीर को दण्डवत् प्रणाम किया और चरण छुए तथा कहा कि गुरुदेव उठो। दिल्ली के बादशाह आपके दर्शनार्थ आए हैं। एक बार उठना। दूसरी बार ही कहा था, सिर अपने आप उठकर धड़ पर लग गया और रामानन्द जी जीवित हो गए।
रामानंद जी के शरीर से आधा खून और आधा दूध निकला हुआ था। जब साहेब कबीर से स्वामी रामानन्द जी ने कारण पूछा तो साहेब ने बताया कि स्वामी जी आपके अन्दर यह थोड़ी-सी कसर और रह गई है कि अभी तक आप हिन्दू और मुसलमान को दो समझते हो। इसलिए आधा खून और आधा दूध निकला है। आप अन्य जाति वालों को अपना साथी समझ चुके हो। यह जीव सभी एक हैं। आप तो जानीजान हो। आप तो लीला कर रहे हो अर्थात् उसको गोल-मोल भी कर दिया और समझा भी गए।
कबीर-अलख इलाही एक है, नाम धराया दोय। कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।1।।
कबीर-राम रहीमा एक है, नाम धराया दोय। कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।2।।
कबीर-कृष्ण करीमा एक है, नाम धराया दोय। कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।3।।
कबीर-काशी काबा एक है, एकै राम रहीम। मैदा एक पकवान बहु, बैठि कबीरा जीम।।4।।
कबीर-एक वस्तु के नाम बहु, लीजै वस्तु पहिचान। नाम पक्ष नहीं कीजिये, सार तत्व ले जान।।5।।
कबीर-सब काहूका लीजिये, सांचा शब्द निहार। पक्षपात ना कीजिये, कहै कबीर विचार।।6।।
कबीर-राम कबीरा एक है, दूजा कबहू ना होय। अंतर टाटी कपट की, तातै दीखे दोय।।7।।
कबीर-राम कबीर एक है, कहन सुनन को दोय। दो करि सोई जानई, सतगुरु मिला न होय।।8।।
रामानंद जी ने सिकंदर को सीने से लगाया तथा उसके बाद हिन्दू तथा मुसलमान को तथा सर्व जाति व धर्मों के व्यक्तियों को प्रभु के बच्चे जानकर प्यार देने लगे तथा अपने औपचारिक शिष्य वास्तव में परमेश्वर कबीर साहेब जी का धन्यवाद किया कि आपने मेरा अज्ञान पूर्ण रूप से दूर कर दिया। हम एक पिता प्रभु की संतान हैं, मुझे दृढ़ विश्वास हो गया। दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी के साथ उनका धार्मिक गुरु शेखतकी भी बनारस गया था। वह रैस्ट हाऊस(विश्राम गृह) में ही रूका था। क्योंकि शेखतकी हिन्दू संतों से बहुत ईष्र्या करता था तथा उन्हें व उनके शिष्यों को काफिर कहता था। इसलिए स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में जाने से इंकार कर दिया था। राजा सिकंदर लोधी के साथ स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में नहीं गया था।
महाराजा सिकंदर ने विश्राम गृह में आकर परमेश्वर कबीर साहेब जी द्वारा अपने असाध्य रोग का निवारण केवल आशीर्वाद मात्र से करने तथा स्वामी रामानन्द जी को पुनर् जीवित करने की कथा खुशी के साथ अपने धार्मिक पीर शेखतकी को बताई तथा कहा कि पीर जी मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ हूँ। मेरे किसी अंग में कोई पीड़ा नहीं है। रात्रि का समय था। प्रभु कबीर साहेब जी सुबह आने की कहकर अपनी कुटिया पर चले गये थे।
शेखतकी ने बादशाह के मुख से अन्य संत की भूरी-भूरी प्रशंसा सुनी तो अन्दर ही अन्दर जल-भुन गया। रात भर करवटें बदलता रहा। परमेश्वर कबीर साहेब जी को नीचा दिखाने की योजना बनाता रहा।
‘‘स्वामी रामदेवानंद गुरू महाराज जी की असीम कृपा से पारख के अंग का सरलार्थ सम्पूर्ण हुआ।’’
।।सत साहेब।।