- प्रभु कबीर जी का मगहर से सशरीर सत्यलोक गमन तथा सूखी नदी में नीर बहाना
- संत दादू दास जी को कबीर जी ने शरण में लिया
पारख के अंग की वाणी चैपाई नं. 1125-1133:-
चले कबीर मगहर कै तांई, तहां वहां फुलन सेज बिछाई।
दोनौंदीन अधिक परभाऊ, दोषी दुश्मन और सब साऊ।।1125।।
तहां बिजलीखां चले पठाना, बीरसिंह बघेला पद प्रवाना।
काशी उमटी चली मगहर कूं, कोई न पावै तास डगरकूं।।1126।।
बैरागी संयासी जोगी, चले मगहर को शब्द बियोगी।
तीन रोजमें पौहचै जाई, तहां वहां सुमरन राम खुदाई।।1127।।
दहूं दीन है बांहां जोरी, शस्त्रा बांधि लिये भरि गोरी।
वै गाडै वै जारन कही, दोनू दीन अधिक सो फही।।1128।।
तहां कबीर कही एक भाषा, शस्त्रा करै सो ताही तलाका।
शस्त्रा करै सो हमरा द्रोही, ज्याकी पैज पिछोड़ी होई।।1129।।
सुन बिजलीखां बात हमारी, हम हैं शब्द रूप निर्विकारी।
बीर सिंह बघेला बिनतीकरि है, हे सतगुरू तुम किसविधि मरि है।।1130।।
तहां वहां चादरि फूल बिछाये, सिज्या छाड़ी पदहि समाये।
दो चादर दहूं दीन उठावैं, ताके मध्य कबीर न पावैं।।1131।।
तहां वहां अबिगत फूल सुवासी, मगहर घोर और चैरा काशी।
अबिगतरूप अलख निरबानी, तहां वहां नीर क्षीर दिया छांनी।।1132।।
दोहा-शंख जुगन जुग जगत में, पद प्रवानि है न्यार।
दासगरीब कबीर हरि, अबिगत अधरि अधार।।1133।।
चले कबीर मगहर कै तांई, तहां वहां फूलन सेज बिछाई।
दोनौं दीन अधिक परभाऊ, दोषी दुश्मन और सब साऊ।।
तहां बिजलीखां चले पठाना, बीरसिंह बघेला पद प्रवाना।
काशी उमटी चली मगहर कूं, कोई न पावै तास डगरकूं।।
वैरागी संयासी जोगी, चले मगहर को शब्द वियोगी।
तीन रोजमैं पौहचै जाई, तहां वहां सुमरन राम खुदाई।।
दहूं दीन है बांहां जोरी, शस्त्रा बांधि लिये भरि गोरी।
वै गाडै वै जारन कही, दोनू दीन अधिक सो फही।।
तहां कबीर कही एक भाषा, शस्त्रा करै सो ताही तलाका।
शस्त्रा करै सो हमरा द्रोही, ज्याकी पैज पिछौडी होई।।
सुन बिजलीखां बात हमारी, हम हैं शब्द रूप निराकारी।
बीरसिंबघेला बिनती करि है, हे सतगुरू तुम किसविधि मरि है।।
तहां वहां चादरि फूल बिछाये, सिज्या छांडी पदहि समाये।
दो चादर दहूं दीन उठावैं, ताके मध्य कबीर न पावैं।।
तहां वहां अविगत फूल सुवासी, मगहर घोर और चैरा काशी।
अविगतरूप अलख निरबानी, तहां वहां नीर क्षीर दियाछांनी।।
दोहा-शंख जुगन जुग जगत मैं, पद प्रवानि है न्यार।
गरीबदास कबीर हरि, अविगत अधरि अधार।।948।।
बन्दी छोड़ गरीबदास जी महाराज की वाणी से राग मारू शब्द नं. 8:-
कीन्हाँ मघर पियाँना हो, दोन्यूं दीन चले संगि जाकै, हिंदू मुसलमंाना हो।।टेक।।
मुक्ति खेत कूं छाडि चले है, तजि काशी अस्थाँना हो। शाह सिकन्दर कदम लेत है, पातिशाह सुलताँना हो।।1
च्यारि बेद के बकता संगि हैं, खोजी बडे बयांना हो। सालिगराम सुरति सैं सेवैं, ज्ञान समुद्र दांना हो।।2
षट्दर्शन जाकै संगि चाले, गावत वांनी नाना हो। अपनां अपनाँ ईष्ट सिंभालैं, बाचैं पोथी पांना हो।।3
चदरि फूल बिछाये सतगुरु, देखै सकल जिहांना हो। च्यारि दाग सैं रहत जुलहदी, अविगत अलख अमाँना हो।।4
बिरसिंघ बघेला करै बीनती, बिजलीखाँन पठांना हो। दो चदरि बकसीस करी हैं, दीनां यौह प्रवांना हो।।5
नूर नूर निरगुण पद मेला, देखि भये हैराँना हो। पद ल्यौलीन भये अविनाशी, पाये पिण्ड न प्राना हो।।6
शब्द सरूप साहिब सरबंगी, शब्दें शब्द समाना हो। दास गरीब कबीर अर्श में, फरकैं धजा निशाँना हो।।7
पारख के अंग की वाणी नं. 1125-1133 का सरलार्थ:-
‘‘प्रभु कबीर जी का मगहर से सशरीर सत्यलोक गमन तथा सूखी नदी में नीर बहाना’’
उसके बाद इस भ्रम को तोड़ने के लिए कि जो मगहर में मरता है वह गधा बनता है और कांशी में मरने वाला स्वर्ग जाता है। (बन्दी छोड़ कहते थे कि सही विधि से भक्ति करने वाला प्राणी चाहे वह कहीं पर प्राण त्याग दे वह अपने सही स्थान पर जाएगा।) उन अज्ञानियों का भ्रम निवारण करने के लिए कबीर साहेब ने कहा कि मैं मगहर में मरूँगा और सभी ज्योतिषी वाले देख लेना कि मैं कहाँ जाऊँगा? नरक में जाऊँगा या स्वर्ग से भी ऊपर सतलोक में।
कबीर साहेब ने काशी से मगहर के लिये प्रस्थान किया। बीर सिंह बघेला और बिजली खाँ पठान ये दोनों ही सतगुरू के शिष्य थे। बीर सिंह ने अपनी सेना साथ ले ली कि कबीर साहेब वहाँ पर अपना शरीर छोड़ेंगे। इस शरीर को लेकर हम काशी में हिन्दू रीति से अंतिम संस्कार करेंगे। यदि मुसलमान नहीं मानेंगे तो लड़ाई कर के शव को लायेंगे। सेना भी साथ ले ली, अब इतनी बुद्धि है हमारी। कबीर परमेश्वर जी हर रोज शिक्षा दिया करते कि हिन्दू मुसलमान दो नहीं हैं। अंत में फिर वही बुद्धि। उधर से बिजली खाँ पठान को पता चला कि कबीर साहेब यहाँ पर आ रहे हैं। बिजली खाँ पठान ने सतगुरू तथा सर्व आने वाले भक्तों तथा दर्शकों की खाने तथा पीने की सारी व्यवस्था की और कहा कि सेना तुम भी तैयार कर लो। हम अपने पीर कबीर साहेब का यहाँ पर मुसलमान विधि से अंतिम संस्कार करेंगे। कबीर साहेब के मगहर पहुँचने के बाद बिजली खाँ ने कहा कि महाराज जी स्नान करो। कबीर साहेब ने कहा कि बहते पानी में स्नान करूँगा। बिजली खान ने कहा कि सतगुरू देव यहाँ पर साथ में एक आमी नदी है, वह भगवान शिव के श्राप से सूखी पड़ी है। उसमें पानी नहीं है। जैसी व्यवस्था दास से हो पाई है पानी का प्रबंध करवाया है। आपके स्नान के लिए प्रबंध किया है। लेकिन संगत बहुत आ गई। इनके नहाने की तो बात बन नहीं पाएगी। पीने का पानी पर्याप्त मात्रा में बाहर से मंगवा रखा है। कबीर साहेब ने कहा कि वह नदी देखें कहाँ पर है? उस नदी पर जा कर साहेब ने हाथ से ऐसे इशारा किया था जैसे यातायात (ट्रैफिक) का सिपाही रूकी हुई गाड़ियों को जाने का संकेत करता है। वह आमी नदी पानी से पूरी भरकर चल पड़ी। “बोलो सतगुरू देव की जय“ ‘‘सत साहेब‘‘। (यह आमी नदी वहाँ पर अभी भी विद्यमान है) सब ने जय जयकार की।
साहेब ने कहा कि एक चदद्र नीचे बिछाओ, एक मैं ऊपर ओढ़ूँगा। (क्योंकि वे जानी जान तो थे) कहने लगे कि ये सेना कैसे ला रखी है तुमने? अब बिजली खाँ पठान और बीर सिंह बघेला आमने-सामने खड़े हंै। उन्होंने तो मुँह लटका लिया और बोले नहीं। वे दूसरे हिन्दू और मुसलमान बिना नाम वाले बोले कि जी हम आपका अंतिम संस्कार अपनी विधि से करेंगे। दूसरे कहते हैं कि हम अपनी विधि से करेंगे। चढा ली बाहें, उठा लिए हथियार तथा कहने लगे कि आ जाओ। कबीर साहेब ने कहा कि नादानों क्या मैंने यही शिक्षा दी थी 120 वर्ष तक। इस मिट्टी का तुम क्या करोगे? चाहे फूँक दो या गाड़ दो, इससे क्या मिलेगा? तुमने क्या शिक्षा ली मेरे से? सुन लो यदि झगड़ा कर लिया तो मेरे से बुरा नहीं होगा। वे जानते थे कि ये कबीर साहेब परम शक्ति युक्त हैं। यदि कुछ कह दिया तो बात बिगड़ जाएगी। शांत हो गये पर मन में यही थी कि शरीर छोड़ने दो, हमने तो यही करना है। वे तो जानी जान थे। उस दिन गृहयुद्ध शुरू हो जाता, सत्यानाश हो जाता, यदि साहेब अपनी कृपा न बक्शते। कबीर साहेब ने कहा कि एक काम कर लेना तुम मेरे शरीर को आधा-आधा काट लेना। परन्तु लड़ना मत। ये मेरा अंतिम आदेश सुन लो और मानो, इसमें जो वस्तु मिले उसको आधा आधा कर लेना। महिना माघ शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी वि. स. 1575 (एक हजार पाँच सौ पचहतर) सन् 1518 को कबीर साहेब ने एक चद्दर नीचे बिछाई और एक ऊपर ओढ़ ली। कुछ फूल कबीर साहेब के नीचे वाली चद्दर पर दो इंच मोटाई में बिछा दिये। थोड़ी सी देर में आकाश वाणी हुई कि मैं तो जा रहा हूँ सतलोक में (स्वर्ग से भी ऊपर)। देख लो चद्दर उठा कर इसमें कोई शव नहीं है। जो वस्तु है वे आधी-आधी ले लेना परन्तु लड़ना नहीं। जब चदद्र उठाई तो सुगंधित फूलों का ढेर शव के समान ऊँचा मिला। बोलो सतगुरू देव की जय ‘‘सत साहेब।‘‘
बीर देव सिंह बघेल और बिजली खाँ पठान एक दूसरे के सीने से लग कर ऐसे रोने लगे जैसे कि बच्चों की माँ मर जाती है। फिर तो वहाँ पर रूदन मच गया। हिन्दू और मुसलमानों का प्यार सदा के लिए अटूट बन गया। एक दूसरे को सीने से लगा कर हिन्दू और मुसलमान रो रहे थे। कहने लगे कि हम समझे नहीं। ये तो वास्तव में अल्लाह आए हुए थे। और ऊपर आकाश में प्रकाश का गोला जा रहा था। बोलो सतगुरू देव की जय ‘‘सत साहेब।‘‘ तो वहाँ मगहर में दोनों धर्मों (हिन्दुओं तथा मुसलमानों) ने एक-एक चद्दर तथा आधे-आधे सुगंधित फूल लेकर सौ फूट के अंतर पर एक-एक यादगार भिन्न-भिन्न बनाई जो आज भी विद्यमान है तथा कुछ फूल लाकर कांशी में जहाँ कबीर साहेब एक चबूतरे(चैरा) पर बैठकर सतसंग किया करते वहाँ काशी चैरा नाम से यादगार बनाई। अब वहाँ पर बहुत बड़ा आश्रम बना हुआ है। मगहर में दोनों यादगारों के बीच में एक साझला द्वार भी है आपस में कोई भेद-भाव नहीं है।
हिन्दू और मुसलमान ऐसे रहते हैं कि जैसे माँ जाए भाई रहा करते हैं। उनसे हमने बात की थी तो उन्होंने कहा कि हमारी आज तक धर्म के नाम पर कोई लड़ाई नहीं हुई। वैसे कहा सुनी तो घर के घर में हो जाती है। फिर भी हमारी आपस में धर्म के नाम पर लड़ाई नहीं होती है। बिजली खाँ पठान ने दोनों यादगारों के नाम पाँच सौ, पाँच सौ बीघा जमीन दी जिसमें हिन्दू तथा मुसलमान अपने प्रबन्धक कमेटी बनाकर व्यवस्थित किए हैं। यह दास (संत रामपाल दास जी महाराज) अपने सैंकड़ों सेवकों सहित तीन बार इस ऐतिहासिक धार्मिक स्थल को देखकर आ चुके हैं। वहाँ जाकर ऐसा लगता है जैसे हमने सच्चाई का खजाना प्राप्त हो गया हो। बोलो सतगुरू देव की जय ‘‘सत साहेब।‘‘
जब कबीर साहिब सतलोक जा रहे थे उस समय आदि माया (प्रकृति) ने फिर जाल बिछाया। एक सुन्दर स्त्राी(अप्सरा) का रूप बना कर कबीर साहिब को भोग विलास के लिए प्रेरित किया, परंतु मुँह की खाकर चली गई।
बन्दी छोड़ गरीबदास जी महाराज की वाणी से राग मारू का शब्द नं. 9:-
देख्या मघर जहूरा हो, कांशी मैं कीर्ति करि चाले, झिलमिल देही नूरा हो।।टेक।।
माया आदि अर्श तैं उतरी, बनी अपसरा हूरा हो। हम तौ बरैं कबीर पुरुष कूं, तूं है दुलहा पूरा हो।।1।।
माया कहैं कबीर पुरुष सैं, देखो बदन जहूरा हो। अर्श विमान सुरग में मंदर, भोगैं हम कूं सूरा हो।।2।।
कहै कबीर सुनौ री माया, कुटिल नजरि तुम घूरा हो। जिनि भोगी सोई कलि रोगी, हो गये धूरम धूरा हो।।3।।
माया कहै कबीर पुरुष सैं, मैं हूं जग सैं दूरा हो। मैं तुमरी पटराँनी दासी, राखौ पलक हजूरा हो।।4।।
कहै कबीर सुनौ री माया, तुम हो लड्डू बूरा हो। जो तुझि खावै सो बहजावै, तास अकलि के कूरा हो।।5।।
सेत मुकुट जहां सेत छत्रा है, बाजैं अनहद तूरा हो। दास गरीब कहै सुनि माया, हम सैं रहियौ दूरा हो।।6।।
कामी नर के अंग की वाणी नं. 74-91:-
माया सतगुरु सूं अटकी, माया सतगुरु सूं अटकी। जोगनि हमरै क्यूं भटकी, जोगनि हमरै क्यूं भटकी।।
हम तो भगलीगर जोगी, हम तो भगलीगर जोगी। हम नहीं माया के भोगी, हम नहीं माया के भोगी।।
तोमैं झगरा है भारी, तोमैं झगरा है भारी। मारे बड छत्राधारी, मारे बड छत्राधारी।।
सेवा करिसूं मैं नीकी, सेवा करिसूं मैं नीकी। हमकूं लागत है फीकी, हमकूं लागत है फीकी।।
हमरी सार नहीं जानी, हमरी सार नहीं जानी। अरीतैंतोघालि दई घानी, अरीतैंतोघालि दई घानी।।
चलती फिरती क्यूं नांहीं, चलती फिरती क्यूं नांही। हम रहते अविगतपद मांहि, हम रहते अविगतपद मांहि।।
अरी तूं गहली है गोली, अरी तूं गहली है गोली। दाग लगावैगी चोली, दाग लगावैगी चोली।।
मेरा अंजन है नूरी, मेरा अंजन है नूरी। अंदर महकै कस्तूरी, अंदर महकै कस्तूरी।।
तुम किसी राजा पै जावो, तुम किसी राजा पै जावो। हमरे मन नांहीं भावो, हमरे मन नांहीं भावो।।
मैं तो अर्धंगी दासी, मैं तो अर्धंगी दासी। हम हैं अनहदपुर बासी, हम हैं अनहदपुर बासी।।
हमरा अनहद में डेरा, हमरा अनहद में डेरा। अंत न पावैगी मेरा, अंत न पावैगी मेरा।।
हमतो आदि जुगादिनिजी, हमतो आदि जुगादिनिजी। अरी तुझ माता कहूंकधी, अरी तुझ माता कहूंकधी।।
अब मैं देऊंगी गारी, अब मैं देऊंगी गारी। हमतो जोगी ब्रह्मचारी, हमतो जोगी ब्रह्मचारी।।
आसन बंधूंगी जिंदा, आसन बंधूंगी जिंदा। गल में डारौंगी फंदा, गल में डारौंगी फंदा।।
आसन मुक्ता री माई, आसन मुक्ता री माई। तीनूं लोक न अंघाई, तीनूं लोक न अंघाई।।
हमरै द्वारै क्यूं रोवौ, हमरै द्वारै क्यूं रोवौ। किसी राजाराणेकूं जोवौ, किसी राजाराणे कूं जोवौ।।
हमरै भांग नहीं भूनी, हमरै भांग नहीं भूनी। माया शीश कूटि रूंनी, माया शीश कूटि रूंनी।।
तूंतो जोगनि है खंडी, तूंतो जोगनि है खंडी। मौहरा फेरि चली लंडी, मौहरा फेरि चली लंडी।।
-: धर्मदास जी का शब्द :-
आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर।।टेक।।
सत्य लोक से चल कर आए, काटन यम की जंजीर ।।1।।
थारे दर्शन से म्हारे पाप कटत हैं, निर्मल होवै जी शरीर ।।2।।
अमृत भोजन म्हारे सतगुरू जीमैं, शब्द दूध की खीर।।3।।
हिन्दू के तुम देव कहाये, मुसलमान के पीर।।4।।
दोनांे दीन का झगड़ा छिड़ गया, टोहे ना पाये शरीर।।5।।
धर्मदास की अर्ज गुसाई, खेवा लंघाइयों परले तीर।।6।।
मलूक दास जी को परमेश्वर कबीर जी संत रूप में मिले थे। उनको सत्यलोक ले जाकर वापिस छोड़ा था। अपनी महिमा से परिचित करवाया। उसके पश्चात् संत मलूक दास जी ने कबीर जी की महिमा का गुणगान किया।
अगम निगम बोध के पृष्ठ 45 (1735) पर मलूक दास जी का शब्द है:-
जपो रे मन साहेब नाम कबीर। (टेक)
एक समय गुरू बंशी बजाई कालिंद्री के तीर। सुरनर मुनि सब चकित भये, रूक गया यमुना नीर।।
काशी तज गुरू मगहर गए, दोऊ दीन के पीर।।
कोई गाड़ै कोई अग्नि जलावै, नेक न धरते धीर। चार दाग से सतगुरू न्यारा। अजरो-अमर शरीर।।
जगन्नाथ का मंदिर बचाया, ऐसे गहर गम्भीर। दास मलूक सलूक कहत है, खोजो खसम कबीर।।
संत दादू दास जी को कबीर जी ने शरण में लिया
श्री दादू जी को सात वर्ष की आयु में जिन्दा बाबा जी के स्वरूप में परमेश्वर जी मिले थे। (दादू पंथ की एक पुस्तक में ग्यारह वर्ष की आयु में कबीर जी का मिलना लिखा है।) उस समय कई अन्य हमउम्र बच्चे भी खेल रहे थे। परमेश्वर कबीर जी ने अपने कमण्डल (लोटे) से कुछ जल पान के पत्ते को कटोरे की तरह बनाकर पिलाया तथा प्रथम नाम देकर सत्यलोक ले गए। दादू जी तीन दिन-रात अचेत (ब्वउं में) रहे। फिर सचेत हुए तथा कबीर जी का गुणगान किया। जो बच्चे श्री दादू जी के साथ खेल रहे थे। उन्होंने गाँव में आकर बताया कि एक बूढ़ा बाबा आया था। उसने जादू-जंत्रा का जल दादू को पिलाया था। परंतु दादू जी ने बताया था कि:-
जिन मोकूं निज नाम दिया, सोई सतगुरू हमार। दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सिरजनहार।।
दादू नाम कबीर की, जे कोई लेवे ओट। ताको कबहू लागै नहीं, काल वज्र की चोट।।
केहरी नाम कबीर है, विषम काल गजराज। दादू भजन प्रताप से, भागै सुनत आवाज।।
अब हो तेरी सब मिटे, जन्म-मरण की पीर। श्वांस-उश्वांस सुमरले, दादू नाम कबीर।।
स्पष्टीकरण:– संत मलूक दास जी तथा संत दादू दास जी को परमेश्वर संत गरीबदास जी की तरह सतलोक जाने के पश्चात् मिले थे। यह प्रकरण कबीर सागर में नहीं था, बाद में लिखा गया है।
अगम निगम बोध पृष्ठ 44 (1734) पर नानक जी का शब्द है:-
वाह-वाह कबीर गुरू पूरा है।(टेक)
पूरे गुरू की मैं बली जाऊँ जाका सकल जहूरा है।
अधर दुलीचे परे गुरूवन के, शिव ब्रह्मा जहाँ शूरा है।
श्वेत ध्वजा फरकत गुरूवन की, बाजत अनहद तूरा है।
पूर्ण कबीर सकल घट दरशै, हरदम हाल हजूरा है।
नाम कबीर जपै बड़भागी, नानक चरण को धूरा है।
अगम निगम बोध पृष्ठ 46 पर प्रमाण दिया है कि महादेव जी के पूज्य ईष्ट देव कबीर परमेश्वर जी हैं।