पारख का अंग (49-55) | मंसूर अली की कथा

पारख के अंग की वाणी नं. 49-51:- गरीब, उतपति परलौ जात हैं, अनंत कोटि ब्रह्मंड। जोगजीत समझाईया, जिब उधरे कागभुसंड।।49।।गरीब, बाशिष्ट बिश्वामित्र से, आवैं जाहिं...

पतिव्रता का अंग (39-41) | राजा वाजीद की कथा

कथा:- राजा वाजीद जी को वैराग्य कैसे हुआ? वाणी नं. 39 से 41 तथा ’सवैया गेंद उछाल‘:- गरीब, बाजींदा बैजार में, तरकस तोरि कमान।सुत्रा मुंये...