पारख के अंग की वाणी नं. 48:-
गरीब, गरुड़ बोध बेदी रची, राम कृष्ण हैरान। लंका परि धावा हुवा, जदि का कहूं बयान।।48।।
अध्याय गरूड़ बोध का सारांश
कबीर सागर में 11वां अध्याय ‘‘गरूड़ बोध‘‘ पृष्ठ 65 (625) पर है:-
परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि मैंने विष्णु जी के वाहन पक्षीराज गरूड़ जी को उपदेश दिया, उसको सृष्टि रचना सुनाई। अमरलोक की कथा सत्यपुरूष की महिमा सुनकर गरूड़ देव अचम्भित हुआ। अपने कानों पर विश्वास नहीं कर रहे थे। मन-मन में विचार कर रहे थे कि मैं आज यह क्या सुन रहा हूँ? मैं कोई स्वपन तो नहीं देख रहा हूँ। मैं किसी अन्य देश में तो नहीं चला गया हूँ। जो देश और परमात्मा मैंने सुना है, वह जैसे मेरे सामने चलचित्रा रूप में चल रहा है। जब गरूड़ देव इन ख्यालों में खोए थे, तब मैंने कहा, हे पक्षीराज! क्या मेरी बातों को झूठ माना है। चुप हो गये हो। प्रश्न करो, यदि कोई शंका है तो समाधान कराओ। यदि आपको मेरी वाणी से दुःख हुआ है तो क्षमा करो। मेरे इन वचनों को सुनकर खगेश की आँखें भर आई और बोले कि हे देव! आप कौन हैं? आपका उद्देश्य क्या है? इतनी कड़वी सच्चाई बताई है जो हजम नहीं हो पा रही है। जो आपने अमरलोक में अमर परमेश्वर बताया है, यदि यह सत्य है तो हमें धोखे में रखा गया है। यदि यह बात असत्य है तो आप निंदा के पात्रा हैं, अपराधी हैं। यदि सत्य है तो गरूड़ आपका दास खास है। परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि मैंने कहा, हे गरूड़देव! जो शंका आपको हुई है, यह स्वाभाविक है, परंतु आपने संयम से काम लिया है। यह आपकी महानता है। परंतु मैं जो आपको अमरपुरूष तथा सत्यलोक की जानकारी दे रहा हूँ, वह परम सत्य है। मेरा नाम कबीर है। मैं उसी अमर लोक का निवासी हूँ। आपको काल ब्रह्म ने भ्रमित कर रखा है। यह ज्ञान ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी को भी नहीं है। आप विचार करो गरूड़ जी! जीव का जन्म होता है। आनन्द से रहने लगता है। परिवार विस्तार होता है। उसके पालन-पोषण में सांसारिक परंपराओं का निर्वाह करते-करते वृद्ध हो जाता है। जिस परिवार को देख-देखकर अपने को धन्य मानता है। उसी परिवार को त्यागकर संसार छोड़कर मजबूरन जाना पड़ता है। स्वयं भी रो रहा है, अंतिम श्वांस गिन रहा है। परिवार भी दुःखी है। यह क्या रीति है? क्या यह उचित है? गरूड़ देव बोले, हे कबीर देव! यह तो संसार का विधान है। जन्मा है तो मरना भी है। परमेश्वर जी ने कहा कि क्या कोई मरना चाहता है? क्या कोई वृद्धावस्था पसंद करता है? गरूड़ देव का उत्तर=नहीं। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि यदि ऐसा हो कि न वृद्ध अवस्था हो, न मृत्यु तो कैसा लगे? गरूड़ देव जी ने कहा कि कहना ही क्या, ऐसा हो जाए तो आनन्द हो जाए परंतु यह तो ख्वाबी ख्याल (स्वपन विचार) जैसा है। हे धर्मदास! मैंने कहा कि वेदों तथा पुराणों को आप क्या मानते हो, सत्य या असत्य? गरूड़ देव जी ने कहा, परम सत्य।
देवी पुराण के तीसरे स्कंद में स्वयं विष्णु जी ने कहा कि हे माता! तुम शुद्ध स्वरूपा हो। यह सारा संसार तुमसे ही उद्भाषित हो रहा है। मैं ब्रह्मा तथा शंकर आपकी कृपा से विद्यमान हैं। हमारा तो आविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है।
परमेश्वर कबीर जी के मुख कमल से ऐसे पुख्ता प्रमाण (सटीक प्रमाण) सुनकर गरूड़ देव चरणों में गिर गए। अपने भाग्य को सराहा और कहा कि जो देव सृष्टि की रचना, ब्रह्मा-विष्णु-महेश तथा दुर्गा देव तथा निरंजन तक की उत्पत्ति जानता है, वह ही रचनहार परमेश्वर है। आज तक किसी ने ऐसा ज्ञान नहीं बताया। यदि किसी जीव को पता होता, चाहे वह ऋषि-महर्षि भी है तो अवश्य कथा करता। मैंने बड़े-बड़े मण्डलेश्वरों के प्रवचन सुने हैं। किसी के पास यह ज्ञान नहीं है। इनको वेदों तथा गीता का भी ज्ञान नहीं है। आप स्वयं को छुपाए हुए हो। मैंने आपको पहचान लिया है। कृपया मुझे शरण में ले लो परमेश्वर। परमेश्वर कबीर जी ने गरूड़ से कहा कि आप पहले अपने स्वामी श्री विष्णु जी से आज्ञा ले लो कि मैं अपना कल्याण कराना चाहता हूँ। एक महान संत मुझे मिले हैं। मैंने उनका ज्ञान सुना है। यदि आज्ञा हो तो मैं अपना कल्याण करा लूँ। मैं आपका दास नौकर हूँ, आप मालिक हैं। हमें सब समय इकट्ठा रहना है। यदि मैं छिपकर दीक्षा ले लूँगा तो आपको दुःख होगा। गरूड़ ने ऐसा ही किया। विष्णु जी से सब बात बताई। श्री विष्णु जी ने कहा मैं आपको मना नहीं करता, आप स्वतंत्रा हैं। आपने अच्छा किया, सत्य बता दिया। मुझे कोई एतराज नहीं है।
हे धर्मदास! मैंने गरूड़ को प्रथम मंत्रा दीक्षा पाँच नाम (कमलों को खोलने वाले प्रत्येक देव की साधना के नाम) की दी। गरूड़ देव ने कहा कि हे गुरूदेव! यह मंत्रा तो इन्हीं देवताओं के हैं। अमर पुरूष का मंत्रा तो नहीं है। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि ये इनकी पूजा के मंत्र नहीं हैं। ये इन देवताओं को अपने अनुकूल करके इनके जाल से छूटने की कूँजी (ज्ञमल) है। इनके वशीकरण मंत्रा हैं। जैसे भैंसे को आकर्षित करने के लिए यदि उसको भैंसा-भैंसा करते हैं तो वह आवाज करने वाले की ओर देखता तक नहीं। जब उसका वशीकरण नाम पुकारा जाता है, हुर्र-हुर्र तो वह तुरंत प्रभाव से सक्रिय हो जाता है। आवाज करने वाले की ओर दौड़ा आता है। आवाज करने वाला व्यक्ति उससे अपनी भैंस को गर्भ धारण करवाता है। इसी प्रकार आप यदि श्री विष्णु जी के अन्य किसी नाम का जाप करते रहें, वे ध्यान नहीं देते। जब आप इस मंत्र का जाप करोगे तो विष्णु देव जी तुरंत प्रभावित होकर साधक की सहायता करते हैं। ये देवता तीनों लोकों (पृथ्वी, स्वर्ग तथा पाताल) के प्रधान देवता हैं। ये केवल संस्कार कर्म लिखा ही दे सकते हैं। इस मंत्रा के जाप से हमारे पुण्य अधिक तथा भक्ति धन अधिक संग्रहित हो जाता है। उसके प्रतिफल में ये देवता साधक की सहायता करते हैं। इस प्रकार इनकी साधना तथा पूजा का अंतर समझना है। जैसे अपने को आम खाने हैं तो पहले मेहनत, मजदूरी, नौकरी करेंगे, धन मिलेगा तो आम खाने को मिलेगा। नौकरी पूजा नहीं होती। उस समय हमारा पूज्य आम होता है। पूज्य की प्राप्ति के लिए किया गया प्रयत्न नौकरी है। इसी प्रकार अपने पूज्य परमेश्वर कबीर जी हैं तथा अमर लोक है। उसके लिए हम श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु, श्री शिव, श्री गणेश तथा श्री दुर्गा जी की मजदूरी करते हैं, साधना करते हैं। पूजा परमेश्वर की करते हैं। गरूड़ जी बड़े प्रसन्न हुए और इस अमृत ज्ञान की चर्चा हेतु श्री ब्रह्मा जी से मिले। उनको बताया कि मैंने एक महर्षि से अद्भुत ज्ञान सुना है। मुझे उनका ज्ञान सत्य लगा है। उन्होंने बताया कि आप (ब्रह्मा), विष्णु तथा शिव नाशवान हो, पूर्ण करतार नहीं हो। आप केवल भाग्य में लिखा ही दे सकते हो। आप किसी की आयु वृद्धि नहीं कर सकते हो। आप किसी के कर्म कम-अधिक नहीं कर सकते। पूर्ण परमात्मा अन्य है, अमर लोक में रहता है। वह पाप कर्म काट देता है। वह मृत्यु को टाल देता है। आयु वृद्धि कर देता है। प्रमाण भी वेदों में बताया है। ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्रा 2 में कहा है कि रोगी का रोग बढ़ गया है। वह मृत्यु को प्राप्त हो गया है। तो भी मैं उस भक्त को मृत्यु देवता से छुड़वा लाऊँ, उसको नवजीवन प्रदान कर देता हूँ। उसको पूर्ण आयु जीने के लिए देता हूँ।
ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्रा 5 में कहा है कि हे पुनर्जन्म प्राप्त प्राणी! तू मेरी भक्ति करते रहना। यदि तेरी आँखें भी समाप्त हो जाएंगी तो तेरी आँखें स्वस्थ कर दूँगा, तेरे को मिलूँगा भी यानि मैं तेरे को प्राप्त भी होऊँगा।
ब्रह्मा जी को वेद मंत्रा कंठस्थ हैं। तुरंत समझ गए, परंतु संसार में लोकवेद के आधार से ब्रह्मा जी अपने आपको प्रजापिता यानि सबकी उत्पत्तिकर्ता मान रहे थे। वेदों को कठंस्थ (याद) कर लेना भिन्न बात है। वेद मंत्रों को समझना विशेष ज्ञान है। मान-बड़ाई वश होकर ब्रह्मा जी ने कहा कि वेदों का ज्ञान मेरे अतिरिक्त विश्व में किसी को नहीं है। इन मंत्रों का अर्थ गलत लगाया है। कबीर परमेश्वर ने ऐसे व्यक्तियों के विषय में कहा है कि:-
कबीर, जान बूझ साच्ची तजैं, करै झूठ से नेह। ताकि संगत हे प्रभु, स्वपन में भी ना देय।।
ब्रह्मा जी गरूड़ के वचन सुनकर अति क्रोधित हुए और कहा कि तेरी पक्षी वाली बुद्धि है। तेरे को कोई कुछ कह दे। उसी की बातों पर विश्वास कर लेता है। तेरे को अपनी अक्ल नहीं है। ब्रह्मा जी ने उसी समय विष्णु, महेश, इन्द्र तथा सब देवताओं व ऋषियों को बुला लिया। सभा लग गई। ब्रह्मा जी ने उनको बुलाने का कारण बताया कि गरूड़ आज नई बात कर रहा है कि ब्रह्मा-विष्णु-महेश नाशवान हैं। पूर्ण परमात्मा कोई अन्य है। वह अमर लोक में रहता है। तुम कर्ता नहीं हो। यह बात सुनकर श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी बहुत क्रोधित हुए और गरूड़ को ब्रह्मा वाले उलाहणें (दोष निकालकर बुरा-भला कहना) कहे। फिर सबने मिलकर निर्णय लिया कि माता (दुर्गा) जी से सत्य जानते हैं। सब मिलकर माता के पास गए। यही प्रश्न पूछा कि क्या हमारे (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) से अन्य कोई पूर्ण प्रभु है। क्या हम नाशवान हैं? माता ने दो टूक जवाब दिया कि तुमको यह गलतफहमी (भ्रम) कब से हो गया कि तुम अविनाशी तथा जगत के कर्ता हो। यदि ऐसा है तो तुम मेरे भी कर्ता (बाप) हुए जबकि तुम्हारा जन्म मेरी कोख से हुआ है। वास्तव में परमेश्वर अन्य है, वही अविनाशी है। वही सबका कर्ता है। यह बात सुनकर सभा भंग हो गई, सब चले गए। परंतु ब्रह्मा-विष्णु-शिव जी के गले में यह सत्य नहीं उतर पा रहा था। उन्होंने गरूड़ को बुलाया। गरूड़ ने आकर प्रणाम किया। आदेश पाकर बैठ गया। तीनों देवताओं ने कहा, हे पक्षीराज! आपको कैसे विश्वास हो कि हम जगत के कर्ता नहीं हैं? आप जो चाहो, परीक्षा करो। गरूड़ जी उठकर उड़कर मेरे पास (कबीर जी के पास) आए तथा सब वृतांत बताया। तब मैंने कहा कि बंग देश (वर्तमान में बांग्लादेश) में एक ब्राह्मण का बारह वर्षीय बालक है। उसकी आयु समाप्त होने वाली है। वह कुछ दिन का मेहमान है। मैंने उस बालक को शरण में लेने के लिए ब्रह्मा, विष्णु, शिव की स्थिति बताई जो गरूड़ तेरे को बताई है। उस बालक ने बहुत विवाद किया और मेरे ज्ञान को नहीं माना। तब मैंने उस बालक से कहा कि तेरी आयु तीन दिन शेष है। यदि तेरे ब्रह्मा-विष्णु-शिव समर्थ हैं तो अपनी रक्षा कराओ। मैं इतना कहकर अंतध्र्यान हो गया। बालक बेचैन है। उस बालक को लेकर देवताओं के पास जाओ। उनसे कुछ बनना नहीं है। फिर आप मेरे से ध्यान से बातें करना। मैं तेरे को आगे क्या करना है, वह बताऊँगा। गरूड़ जी उस बालक को लेकर ब्रह्मा-विष्णु-शिव के पास गए। गरूड़ ने बालक को समझाया कि आप उन देवताओं से कहना कि हम आपके भक्त हैं। मेरे दादा-परदादा, पिता और मैंने सदा आपकी पूजा की है। मेरे जीवन के दो दिन शेष हैं। मेरी आयु भी क्या है? कृपया मेरी आयु वृद्धि कर दें। बच्चे ने यही विनय की तो तीनों ने कोशिश की परंतु व्यर्थ। फिर विचार किया कि धर्मराज (न्यायधीश) के पास चलते हैं। सबका हिसाब (account) उसी के पास है। उससे वृद्धि करा देते हैं। यह विचार करके सबके सब धर्मराज के पास गए। उनसे तीनों देवताओं ने कहा कि पहले तो यह बताओ कि इस ब्राह्मण बच्चे की कितनी आयु है? धर्मराज ने डाॅयरी (रजिस्टर) देखकर बताया कि कल इसकी मृत्यु हो जाएगी। तीनों देवताओं ने कहा कि आप इस बच्चे की आयु वृद्धि कर दो। धर्मराज ने कहा, यह असंभव है। तीनों ने कहा कि हम आपके पास बार-बार नहीं आते, आज इज्जत-बेइज्जती का प्रश्न है। हमारे आये हुओं की इज्जत तो रख लो। धर्मराज ने कहा कि एक पल भी न बढ़ाई जा सकती है, न घटाई जा सकती है। यदि आप अपनी आयु इसको दे दो तो वृद्धि
कर सकता हूँ। यह सुनते ही सबकी हवा निकल गई। उस समय कहने लगे कि यह तो परमेश्वर ही कर सकता है। वहाँ से तुरंत चल पड़े और गरूड़ से कहा कि कोई और समर्थ शक्ति है तो तुम इसकी आयु बढ़वाकर दिखा दो। गरूड़ ने कबीर जी से ध्यान द्वारा (टेलीफोन से) सम्पर्क किया। परमेश्वर कबीर जी ने ध्यान द्वारा बताया कि आप इसके लिए मानसरोवर से जल ले आओ। वहाँ एक श्रवण नाम का भक्त मिलेगा। उसको मैंने सब समझा दिया है, आप अमृत ले आओ। गरूड़ जी ने जैसी आज्ञा हुई, वैसा ही किया। अमृत लाकर उस बच्चे को पिला दिया। उस बालक के पास मैं गया। गरूड़ ने उसे सब समझा दिया कि अमृत तो बहाना है। ये स्वयं परमेश्वर हैं। इन्होंने जल मन्त्रिात करके दिया था। बालक तुम दीक्षा ले लो। इस अमृत से तो दस दिन जीवित रहोगे। बालक ने मेरे से दीक्षा ली। जब बालक 15 दिन तक नहीं मरा तो गरूड़ ने तीनों ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी को बताया कि वह बालक जीवित है। मेरे गुरू जी से दीक्षा ले ली है। उन्होंने उस बच्चे को पूर्ण आयु जीने का आशीर्वाद दे दिया है। ब्रह्मा-विष्णु-महेश तीनों फिर धर्मराज के पास गए, साथ में गरूड़ भी गया। तीनों देवताओं ने धर्मराज से पूछा कि वह बालक कैसे जीवित है, उसको मर जाना चाहिए था। धर्मराज ने उसका खाता देखा तो उसकी आयु लम्बी लिखी थी। धर्मराज ने कहा कि यह ऊपर से ही होता है। यह तो कभी-कभी होता है। उस परमेश्वर की लीला को कौन जान सकता है? तीनों देवताओं को आश्चर्य हुआ, परंतु मान-बड़ाई के कारण प्रत्यक्ष देखकर भी सत्य को माना नहीं। अपना अहम भाव नहीं त्यागा। गरूड़ को विश्वास अटल हो गया।
कबीर, राज तजना सहज है, सहज त्रिया का नेह। मान बड़ाई ईष्र्या, दुर्लभ तजना येह।।
इस गरूड़ बोध के अंत में वासुकी नाग कन्या वाला प्रकरण गलत तरीके से लिखा है। इसमें गरूड़ को गुरू पद पर चरितार्थ कर रखा है। वह ऐसा नहीं है। जो भी किया, परमेश्वर कबीर जी ने किया है।
अब पढ़ें कुछ अमृतवाणी गरूड़ बोध से
धर्मदास वचन
धर्मदास बीनती करै, सुनहु जगत आधार। गरूड़ बोध भेद सब, अब कहो तत्त्व विचार।।
सतगुरू वचन (कबीर वचन)
प्रथम गरूड़ सों भैंट जब भयऊ। सत साहब मैं बोल सुनाऊ।
धर्मदास सुनो कहु बुझाई। जेही विधि गरूड़ को समझाई।।
गरूड़ वचन
सुना बचन सत साहब जबही। गरूड़ प्रणाम किया तबही।।
शीश नीवाय तिन पूछा चाहये। हो तुम कौन कहाँ से आये।।
ज्ञानी (कबीर) वचन
कहा कबीर है नाम हमारा। तत्त्वज्ञान देने आए संसारा।।
सत्यलोक से हम चलि आए। जीव छुड़ावन जग में प्रकटाए।।
गरूड़ वचन
सुनत बचन अचम्भो माना। सत्य पुरूष है कौन भगवाना।।
प्रत्यक्षदेव श्री विष्णु कहावै। दश औतार धरि धरि जावै।।
ज्ञानी (कबीर) बचन
तब हम कहया सुनो गरूड़ सुजाना। परम पुरूष है पुरूष पुराना।। (आदि का)
वह कबहु ना मरता भाई। वह गर्भ से देह धरता नाहीं।।
कोटि मरे विष्णु भगवाना। क्या गरूड़ तुम नहीं जाना।।
जाका ज्ञान बेद बतलावैं। वेद ज्ञान कोई समझ न पावैं।।
जिसने कीन्हा सकल बिस्तारा। ब्रह्मा, विष्णु, महादेव का सिरजनहारा।।
जुनी संकट वह नहीं आवे। वह तो साहेब अक्षय कहावै।।
गरूड़ वचन
राम रूप धरि विष्णु आया। जिन लंका का मारा राया।।
पूर्ण ब्रह्म है विष्णु अविनाशी। है बन्दी छोड़ सब सुख राशी।।
तेतीस कोटि देवतन की बन्द छुड़ाई। पूर्ण प्रभु हैं राम राई।।
ज्ञानी (कबीर) वचन
तुम गरूड़ कैसे कहो अविनाशी। सत्य पुरूष बिन कटै ना काल की फांसी।।
जा दिन लंक में करी चढ़ाई। नाग फांस में बंधे रघुराई।।
सेना सहित राम बंधाई। तब तुम नाग जा मारे भाई।।
तब तेरे विष्णु बन्दन से छूटे। याकु पूजै भाग जाके फूटे।।
कबीर ऐसी माया अटपटी, सब घट आन अड़ी।
किस-किस कूं समझाऊँ, कूअै भांग पड़ी।।
गरूड़ वचन
ज्ञानी गरूड़ है दास तुम्हारा। तुम बिन नहीं जीव निस्तारा।।
इतना कह गरूड़ चरण लिपटाया। शरण लेवों अविगत राया।।
कबहु ना छोडूँ तुम्हारा शरणा। तुम साहब हो तारण तरणा।।
पत्थर बुद्धि पर पड़े है ज्ञानी। हो तुम पूर्ण ब्रह्म लिया हम जानी।।
ज्ञानी (कबीर) वचन
तब हम गरूड़ कुं पाँच नाम सुनाया। तब वाकुं संशय आया।।
यह तो पूजा देवतन की दाता। या से कैसे मोक्ष विधाता।।
तुमतो कहो दूसरा अविनाशी। वा से कटे काल की फांसी।।
नायब से कैसे साहेब डरही। कैसे मैं भवसागर तिरही।।
ज्ञानी (कबीर) वचन
साधना को पूजा मत जानो। साधना कूं मजदूरी मानो।।
जो कोऊ आम्र फल खानो चाहै। पहले बहुते मेहनत करावै।।
धन होवै फल आम्र खावै। आम्र फल इष्ट कहावै।।
पूजा इष्ट पूज्य की कहिए। ऐसे मेहनत साधना लहिए।।
यह सुन गरूड़ भयो आनन्दा। संशय सूल कियो निकन्दा।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी से गरूड़ देव ने कहा कि हे परमेश्वर! आपने तो इन्हीं देवताओं के नाम मंत्रा दे दिये। यह इनकी पूजा है। आपने बताया कि ये तो केवल 16 कला युक्त प्रभु हैं। काल एक हजार कला युक्त प्रभु है। पूर्ण ब्रह्म असँख्य कला का परमेश्वर है। आपने सृष्टि रचना में यह भी बताया है कि काल ने आपको रोक रखा है। काल ब्रह्म के आधीन तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु, शिव जी हैं। हे परमेश्वर! नायब (उप यानि छोटा) से साहब (स्वामी-मालिक) कैसे डरेगा? यानि ब्रह्मा, विष्णु, शिव जी तो केवल काल ब्रह्म के नायब हैं। जैसे नायब तहसीलदार यानि छोटा तहसीलदार होता है। तो छोटे से बड़ा कैसे डर मानेगा? भावार्थ है कि ये काल ब्रह्म के नायब हैं। आपने इनकी भक्ति बताई है, इनके मंत्रा जाप दिए हैं। ये नायब अपने साहब (काल ब्रह्म) से हमें कैसे छुड़वा सकेंगे? तब परमेश्वर कबीर जी ने पूजा तथा साधना में भेद बताया कि यदि किसी को आम्र फल यानि आम का फल खाने की इच्छा हुई है तो आम फल उसका पूज्य है। उस पूज्य वस्तु को प्राप्त करने के लिए किया गया प्रयत्न साधना कही जाती है। जैसे धन कमाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। उस धन से आम मोल लेकर खाया जाता है। इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा हमारा ईष्ट देव यानि पूज्य देव है। जो देवताओं के मंत्रा का जाप मेहनत (मजदूरी) है। जो नाम जाप की कमाई रूपी भक्ति धन मिलेगा, उसको काल ब्रह्म में छोड़कर कर्जमुक्त होकर अपने ईष्ट यानि पूज्य देव कबीर देव (कविर्देव) को प्राप्त करेंगे। यह बात सुनकर गरूड़ जी अति प्रसन्न हुए तथा गुरू के पूर्ण गुरू होने का भी साक्ष्य मिला कि पूर्ण गुरू ही शंका का समाधान कर सकता है और दीक्षा प्राप्ति की। गरूड़ को त्रोतायुग में शरण में लिया था। श्री विष्णु जी का वाहन होने के कारण तथा बार-बार उनकी महिमा सुनने के कारण तथा कुछ चमत्कार श्री विष्णु जी के देखकर गरूड़ जी की आस्था गुरू जी में कम हो गई, परंतु गुरू द्रोही नहीं हुआ। फिर किसी जन्म में मानव शरीर प्राप्त करेगा, तब परमेश्वर कबीर जी गरूड़ जी की आत्मा को शरण में लेकर मुक्त करेंगे। दीक्षा के पश्चात् गरूड़ जी ने ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी से ज्ञान चर्चा करने का विचार किया। गरूड़ जी चलकर ब्रह्मा जी के पास गए। उनसे ज्ञान चर्चा की।
गरूड़ वचन ब्रह्मा के प्रति
ब्रह्मा कहा तुम कैसे आये। कहो गरूड़ मोहे अर्थाय।।
तब हम कहा सुनों निरंजन पूता। आया तुम्हें जगावन सूता।।
जन्म-मरण एक झंझट भारी। पूर्ण मोक्ष कराओ त्रिपुरारी।।
ब्रह्मा वचन
हमरा कोई नहीं जन्म दाता। केवल एक हमारी माता।।
पिता हमारा निराकर जानी। हम हैं पूर्ण सारंगपाणी।।
हमरा मरण कबहु नहीं होवै। कौन अज्ञान में पक्षि सोवै।।
तबही ब्रह्मा विमान मंगावा। विष्णु, ब्रह्मा को तुरंत बुलावा।।
गए विमान दोनों पासा। पल में आन विराजे पासा।।
इन्द्र कुबेर वरूण बुलाए। तेतिस करोड़ देवता आए।।
आए ऋषि मुनी और नाथा। सिद्ध साधक सब आ जाता।।
ब्रह्मा कहा गरूड़ नीन्द मैं बोलै। कोरी झूठ कुफर बहु तोलै।।
कह कोई और है सिरजनहारा। जन्म-मरण बतावै हमारा।।
ताते मैं यह मजलिस जोड़ी। गरूड़ के मन क्या बातां दौड़ी।।
ऋषि मुनि अनुभव बताता। ब्रह्मा, विष्णु, शिव विधाता।।
निर्गुण सरगुण येही बन जावै। कबहु नहीं मरण मैं आवै।।
विष्णु वचन
पक्षीराज यह क्या मन में आई। पाप लगै बना आलोचक भाई।।
हमसे और कौन बडेरा दाता। हमहै कर्ता और चैथी माता।।
तुमरी मति अज्ञान हरलीनि। हम हैं पूर्ण करतार तीनी।।
महादेव वचन
कह महादेव पक्षी है भोला। हृदय ज्ञान इन नहीं तोला।।
ब्रह्मा बनावै विष्णु पालै। हम सबका का करते कालै।।
और बता गरूड़ अज्ञानी। ऋषि बतावै तुम नहीं मानी।।
चलो माता से पूछै बाता। निर्णय करो कौन है विधाता।।
सबने कहा सही है बानी। निर्णय करेगी माता रानी।।
सब उठ गए माता पासा। आपन समस्या करी प्रकाशा।।
माता वचन
कहा माता गरूड़ बताओ। और कर्ता है कौन समझाओ।।
गरूड़ वचन
मात तुम जानत हो सारी। सच्च बता कहे न्याकारी।।
सभा में झूठी बात बनावै। वाका वंश समूला जावै।।
मैं सुना और आँखों देखा। करता अविगत अलग विशेषा।।
जहाँ से जन्म हुआ तुम्हारा। वह है सबका सरजनहारा।।
वेद जाका नित गुण गावैं। केवल वही एक अमर बतावै।।
मरहें ब्रह्मा विष्णु नरेशा। मर हैं सब शंकर शेषा।।
अमरपुरूष सत पुर रहता। अपने मुख सत्य ज्ञान वह कहता।।
वेद कहे वह पृथ्वी पर आवै। भूले जीवन को ज्ञान बतलावै।।
क्या ये झूठे शास्त्रा सारे। तुम व्यर्थ बन बैठे सिरजनहारे।।
मान बड़ाई छोड़ो भाई। ताकि भक्ति करे अमरापुर जाई।।
माता कहना साची बाता। बताओ देवी है कौन विधाता।।
माता (दुर्गा) वचन
माता कह सुनो रे पूता। तुम जोगी तीनों अवधूता।।
भक्ति करी ना मालिक पाए। अपने को तुम अमर बताए।।
वह कर्ता है सबसे न्यारा। हम तुम सबका सिरजनहारा।।
गरूड़ कहत है सच्ची बानी। ऐसे बचन कहा माता रानी।।
सब उठ गए अपने अस्थाना। साच बचन काहु नहीं माना।।
गरूड़ वचन
ब्रह्मा विष्णु मोहे बुलाया। महादेव भी वहाँ बैठ पाया।।
तीनों कहे कोई दो प्रमाणा। तब हम तोहे साचा जाना।।
मैं कहा गुंगा गुड़ खावै। दुजे को स्वाद क्या बतलावै।।
मैं जात हूँ सतगुरू पासा। ला प्रमाण करू भ्रम विनाशा।।
त्रिदेव कहें लो परीक्षा हमारी। पूर्ण करें तेरी आशा सारी।।
हमही मारें हमही बचावैं। हम रहत सदा निर्दावैं।।
गरूड़ कहा हम करें परीक्षा। तुम पूर्ण तो लूं तुम्हारी दीक्षा।।
उड़ा वहाँ से गुरू पासे आया। सब वृन्तात कह सुनाया।।
सतगुरू (कबीर) वचन
गरूड़ सुनो बंग देश को जाओ। बालक मरेगा कहो उसे बचाओ।।
दिन तीन की आयु शेषा। करो जीवित ब्रह्मा विष्णु महेशा।।
फिर हम पास आना भाई। हम बालक को देवैं जिवाई।।
बंग देश में गरूड़ गयो, बालक लिया साथ।
त्रिदेवा से अर्ज करी, जीवन दे बालक करो सुनाथ।।
त्रिदेव वचन
धर्मराज पर है लेखा सारा। बासे जाने सब विचारा।।
गरूड़ और बालक सारे। गए धर्मराज दरबारे।।
धर्मराज से आयु जानी। दिन तीन शेष बखानी।।
याकी आयु बढ़ै नाहीं। मृत्यु अति नियड़े आयी।।
त्रिदेव कहँ आए राखो लाजा। हम क्या मुख दिखावैं धर्मराजा।।
धर्म कह आपन आयु दे भाई। तो बालक की आयु बढ़ जाई।।
चले तीनों न नहीं पार बसाई। बने बैठे थे समर्थ राई।।
सुन गरूड़ यह सत्य है भाई। आई मृत्यु न टाली जाई।।
गरूड़ वचन
समर्थ में गुण ऐसा बताया। आयु बढ़ावै और अमर करवाया।।
अब मैं जाऊँ समर्थ पासा। बालक बचने की पूरी आशा।।
गया गरूड़ कबीर की शरणा। दया करो हो साहब जरणा(विश्वास)।।
कबीर साहब वचन
सुनो गरूड़ एक अमर बानी। यह अमृत ले बालक पिलानी।।
जीवै बालक उमर बढ़ जावै। जग बिचरे बालक निर्दावै।।
बालक लाना मेरे पासा। नाम दान कर काल विनाशा।।
जैसा कहा गरूड़ ने कीन्हा। बालक कूं जा अमृत दीना।।
ले बालक तुरंत ही आए। सतगुरू से दीक्षा पाए।।
आशीर्वाद दिया सतगुरू स्वामी। दया करि प्रभु अंतर्यामी।।
बदला धर्मराज का लेखा। ब्रह्मा विष्णु शिव आँखों देखा।।
गए फिर धर्मराज दरबारा। लेखा फिर दिखाऊ तुम्हारा।।
धर्मराज जब खाता खोला। अचर्ज देख मुख से बोला।।
परमेश्वर का यह खेल निराला। उसका क्या करत है काला।।
वो समर्थ राखनहारा। वाने लेख बदल दिया सारा।।
सौ वर्ष यह बालक जीवै। भक्ति ज्ञान सुधा रस पीवै।।
यह भी लेख इसी के माहीं। आँखों देखो झूठी नाहीं।।
देखा लेखा तीनों देवा। अचर्ज हुआ कहूँ क्या भेवा।।
बोले ब्रह्मा विष्णु महेशा। परम पुरूष है कोई विशेषा।।
जो चाहे वह मालिक करसी। वाकी शरण फिर कैसे मरसी।।
पक्षीराज तुम साचे पाये। नाहक हम मगज पचाऐ।।
करो तुम जो मान मन तेरा। तुम्हरा गरूड़ भाग बड़ेरा।।
पूर्ण ब्रह्म अविनाशी दाता। सच्च में है कोई और विधाता।।
इतना कह गए अपने धामा। गरूड़ और बालक करि प्रणामा।।
भक्ति करी बालक चित लाई। गरूड़ अरू बालक भये गुरू भाई।।
धर्मदास यह गरूड़ को बोधा। एक-एक वचन कहा मैं सोधा।।
‘‘कबीर सागर के अध्याय ‘‘गरूड़ बोध‘‘ का सारांश सम्पूर्ण हुआ।’’