पारख का अंग (56-59) | राबी की कथा

राबी की कथा

पारख के अंग की वाणी नं. 56-59:-

गरीब, सुलतानी मक्कै गये, मक्का नहीं मुकाम। गया रांड के लेन कूं, कहै अधम सुलतान।।56।।
गरीब, राबिया परसी रबस्यूं, मक्कै की असवारि। तीन मजिल मक्का गया, बीबी कै दीदार।।57।।
गरीब, फिर राबिया बंसरी बनी, मक्कै चढाया शीश। पूर्बले संस्कार कुछ, धनि सतगुरु जगदीश।।58।।
गरीब, बंसरीसैं बेश्वा बनी, शब्द सुनाया राग। बहुरि कमाली पुत्री, जुग जुग त्याग बैराग।।59।।

राबी की कथा का आंशिक वर्णन इन वाणियों में है। कुछ वर्णन अचला के अंग की वाणी नं. 363-368 तक है:-

गरीब, राबीकूं सतगुरु मिले, दीना अपना तेज। ब्याही एक सहाबसैं, बीबी चढ़ी न सेज।।363।।
गरीब, राबी मक्केकूं चली, धर्या अल्हका ध्यान। कुत्ती एक प्यासी खड़ी, छुटे जात हैं प्राण।।364।।
गरीब, केश उपारे शीशके, बाटी रस्सी बीन। जाकै बस्त्रा बांधि कर, जल काढ्या प्रबीन।।365।।
गरीब, सुनही कूं पानी पिया, उतरी अरस अवाज। तीन मजल मक्का गया, बीबी तुह्मरे काज।।366।।
गरीब, बीबी मक्के पर चढ़ी, राबी रंग अपार। एक लाख असी जहां, देखै सब संसार।।367।।
गरीब, राबी पटरा घालि कर, किया जहां स्नान। एक लाख असी बहे, मंगर मल्या सुलतान।।368।।

उपरोक्त वाणियों का सरलार्थ:-

प्रत्येक जीवात्मा सत्यलोक से काल लोक में अपनी गलती से आया है। सत्यलोक में (जरा) वृद्ध अवस्था तथा मरण नहीं था। सब सुख था। बिना कर्म किए सर्व सुविधाएँ जो काल लोक के स्वर्ग-महास्वर्ग में भी नहीं हैं, वे सत्यलोक में प्रत्येक हंस आत्मा को मुफ्त में प्राप्त थी। काल लोक के स्वर्ग तथा महास्वर्ग (ब्रह्म लोक) में सुख-सुविधा मोल मिलती हैं। साधक की कमाई के बदले मिलती हैं। मूल्य (rate) भी काल का मनमाना है। कमीशन 25% अलग से है। सत्यलोक में मृत्यु नहीं है। काल लोक में मृत्यु अवश्य है जो बुरी बात है। मृत्यु से भी बुरी बात वृद्धावस्था जो सतलोक में नहीं है। राबी वाली आत्मा कलयुग में ऋषि गंगाधर की पत्नी दीपिका थी जिसने सतयुग में लीला करने आए बालक रूप कबीर जी के पालन-पोषण की सेवा करके शुभकर्म बनाए थे। त्रेतायुग में ऋषि गंगाधर वाली आत्मा ऋषि वेदविज्ञ रूप में जन्में तथा दीपिका वाली आत्मा सूर्या रूप में जन्मी। ऋषि वेदविज्ञ से विवाह संस्कार हुआ। त्रेतायुग में कबीर परमेश्वर जी ऋषि मुनीन्द्र नाम से प्रकट रहे। त्रेतायुग में लीला करने आए कबीर परमात्मा सत्ययुग की तरह कमल के फूल पर नवजात शिशु के रूप में प्रकट हुए थे। वहाँ से ऋषि वेदविज्ञ निःसंतान थे। वे अपने घर लाए थे। उसकी पत्नी सूर्या ने कबीर परमात्मा बालक के पालन-पोषण की सेवा करके फिर शुभकर्म बनाए थे। दीपिका वाली आत्मा कलयुग में राबी नाम की लड़की मुसलमान धर्म में उत्पन्न हुई। परमात्मा की भक्ति में दृढ़ हो गई थी। विवाह करवाने से भी मना कर दिया था क्योंकि उस पुण्यात्मा को सतगुरू कबीर जी जिंदा बाबा के वेश में मिले थे जिस समय जंगल में पशुओं का चारा लेने अन्य महिलाओं के साथ गई थी। परमात्मा कबीर जी ने उसी जंगल में अपनी शक्ति से एक छोटी-सी तलाई (जोहड़ी) बनाई। उसके चारों ओर छोटी बगीची बनाई। एक झोंपड़ी बनाई। वहाँ एक जिंदा बाबा के वेश में विराजमान हुए। लड़की घास काटती हुई अकेली उस ओर चली गई। साधु को देख प्रभावित हुई। उसको सलाम वालेकम कहा। ज्ञान सुनाने का आग्रह किया। परमात्मा ने एक घंटा ज्ञान सुनाया। लड़की को विशेष प्रेरणा हुई। दीक्षा लेने की प्रार्थना की। सतगुरू ने कहा कि बेटी दो दिन और सत्संग सुन, फिर दीक्षा दूँगा। परंतु किसी को मेरे विषय में मत बताना कि वहाँ कोई बाबा रहता है। लड़की राबी ने दो दिन और अकेली जाकर सत्संग सुना, दीक्षा ली। लड़की घर गई। परमात्मा ने कहा था कि अब मैं यहाँ से चला जाऊँगा। तू भक्ति ना छोड़ना। लड़की ने चार वर्ष तक परमात्मा द्वारा बताई साधना की। बाद में सत्संग के अभाव के कारण सत्य साधना त्यागकर अपने धर्म वाली साधना करने लगी। जब तक उसकी आयु सोलह वर्ष हो गई थी। माता-पिता ने विवाह करने का पक्का इरादा कर लिया। लड़की भी अपनी जिद पर डटी थी। माता-पिता ने कहा कि जवान बेटी को घर पर नहीं रखा जा सकता। यदि तू हमारी बात नहीं मानेगी तो हम दोनों आत्महत्या कर लेंगे। तेरे को चार दिन का समय देते हैं। विचार करके बता देना। लड़की राबी ने विचार किया कि विवाह कर लेती हूँ। पति से निवेदन करूँगी कि मैं संतान उत्पत्ति क्रिया नहीं करूँगी। मैं भक्ति करके उद्धार करवाना चाहती हूँ। आप अपना और विवाह कर लो। यदि नहीं मानेगा तो जीवन लीला का अंत कर लूँगी। लड़की ने माता-पिता से विवाह करने के लिए हाँ कर दी। एक अधिकारी से राबी देवी का विवाह हुआ। वह मुसलमान अधिकारी परमात्मा से डरने वाला था। परंतु भक्ति विशेष नहीं करता था। विवाह के पश्चात् रात्रि के समय पति ने मिलन करने को कहा तो लड़की ने स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया कि मैं मिलन (ैमग) नहीं करूँगी। मैं भक्ति करना चाहती हूँ। आप चाहे तो अपना अन्य विवाह कर लो। मेरे को एक झोंपड़ी आपके आँगन में बनवा देना। मैं गुजारा कर लूँगी। पति ने बड़ी सभ्यता से परमात्मा से डरकर कहा कि राबी! यदि आपने पुरूष मिलन नहीं करना था यानि संतान उत्पन्न नहीं करनी थी तो निकाह कबूल किसलिए किया था? राबी ने कहा कि मेरे माता-पिता की इज्जत की ओर देखकर। उन्होंने मरने की ठान ली थी। समाज के डर से वे अपने प्राण देने को तैयार थे तो मैंने यह फैसला लेना पड़ा। अब यदि आप पति का अधिकार जानकर बलपूर्वक मिलन (sex) करोगे तो मैं आत्महत्या कर लूँगी। यह मेरा अंतिम निर्णय है। पति ने कहा राबी! अच्छी बात है कि आप परमात्मा के लिए कुर्बान हैं। परंतु मेरे माता-पिता की भी इज्जत, हमारा भी समाज में सम्मान है। मेरा भी निर्णय सुन ले। घर से बाहर बिना आज्ञा के नहीं जाएगी। भक्ति कर। समाज की दृष्टि में मेरी पत्नी रहेगी। मेरे लिए मेरी बहन रहेगी। किसी वस्तु का अभाव नहीं रहने दूँगा। आप भक्ति करो। मेरे को भी पुण्य लाभ आपकी सेवा करने से मिलेगा। मैं अन्य विवाह कर लूँगा। राबी के सामाजिक पति ने अन्य विवाह कर लिया। राबी साध्वी को बहन के समान रखा। उसकी प्रत्येक सुख-सुविधा का ध्यान रखा। जब राबी की पचपन-साठ वर्ष के आस-पास आयु हुई तो मुसलमान धर्म के अनुसार हज करने का मन बनाया। अपने पति उर्फ मुँह बोले भाई से अपनी इच्छा बताई जो उसने सहर्ष स्वीकार कर ली। गाँव के अन्य व्यक्तियों के साथ राबी साध्वी को भी भेज दिया। सब चले जा रहे थे। रास्ते में एक कुँआ आया। उसके पास जल निकालने का साधन रस्सा तथा बाल्टी नहीं थी। लग रहा था कि बाल्टी किसी यात्री की गलती से कुँए में गिर गई थी। वहाँ एक कुतिया प्यासी खड़ी थी। देवी राबी समझ गई कि कुतिया बहुत प्यासी है। लगता है आस-पास इसके बच्चे भी हैं जो छोटे हैं। चलने भी नहीं लगे हैं। साथ वाले हज यात्रियों ने पानी पीना चाहा, परंतु रस्सा-बाल्टी न होने के कारण आगे को चल दिए। उन्हें मालूम था कि आगे भी कुँआ है जो एक कोस (तीन किलोमीटर) की दूरी पर था। हज यात्रियों के लिए स्थान-स्थान पर कुँए बनवा रखे थे। साथी यात्री आगे बढ़ गए। उन्होंने राबी का ध्यान नहीं किया क्योंकि वह रस्सा-बाल्टी खोजने एक ओर गई थी। राबी को कोई साधन जल निकालने का नहीं मिला। दिल में दया थी। परमात्मा से डरने वाली थी। पिछले संस्कार प्रबल थे। राबी ने अपने सिर के केश उखाडे़, एक लम्बी रस्सी बनाई। शरीर के कपड़े उतारे। रस्सी से बाँधा औ कुँए के जल में डुबोया और तुरंत बाहर निकाला। उन्हें निचोड़कर जल घड़े के टुकड़े में डाला जो पहले ही कुँए के साथ रखा था। शायद जब रस्सी बाल्टी थी तो यात्री उस ठीकरे में जल डालते थे। कुतिया तथा अन्य छोटे जानवर उसमें जल पीते थे। इसी आशा में कुतिया कुँए के पास राबिया के पैरों को छू रही थी। कभी कुँए पर झाँक रही थी। कुतिया ने पेट भरकर जल पीया। राबी ने कपड़े निचोड़कर निकाले। जल से अपना खून धोया जो शरीर पर केश उखाड़ने से लगा था। कपड़े पहने। यात्रा का प्रस्थान करने लगी तो तीन मंजिल की दूरी पर मक्का की मस्जिद थी। {एक मंजिल बीस मील की होती थी। एक मील तीन किलोमीटर का होता था।} मक्का यानि मस्जिद अपने स्थान से उठकर उड़कर कुँए के साथ लग गया। मक्का को देख राबी आश्चर्यचकित हो गई जैसे स्वपन होता है। राबी उस मक्का में प्रवेश कर गई। वह तो इसी उद्देश्य से आई थी। अब्राहिम अधम सुल्तान वाला जीव किसी अन्य मानव जीवन में मुसलमान धर्म में जन्मा था। वह भी मक्का में गया हुआ था। उसे सतगुरू कबीर जी मिले थे। तत्त्वज्ञान समझाया था। दीक्षा दे रखी थी। अब्राहिम अन्य भोले-भटके मानव को यथार्थ अध्यात्म ज्ञान समझाने के लिए प्रतिवर्ष मक्का में जाता था। जब मक्का मस्जिद अपने स्थान से उड़ गया तो अन्य व्यक्तियों को अनहोनी की आशंका हुई। एक-दूसरे से बातें करने लगे कि मक्का कहाँ गया। अल्लाह का कमाल है। अब्राहिम ने कहा कि ‘‘एक रांड को लेने गया है।’’ यह मक्का एक मुकाम है। यह तो मकान है। इसमें अल्लाह नहीं है। अल्लाह तो ऊपर आकाश में है। मुसलमान होने के कारण अब्राहिम का अन्य ने कोई विरोध नहीं किया। इतने में मक्का उड़कर आया। अपने यथास्थान पर स्थिर हो गया। पता चला कि एक पुण्यात्मा देवी राबी को लेने मक्का गया था। उसे बैठाकर ले आया। सब उस पुण्यात्मा को देखने लगे। उसकी भक्ति की सराहना करने लगे। अब्राहिम से प्रश्न किया आपने ऐसी पुण्यात्मा को अपशब्द किसलिए कहे? आपको पाप लगेगा। तब अब्राहिम ने बताया कि इस पुण्यात्मा को स्वयं अल्लाहु अकबर जिंदा बाबा के वेश में मिले थे। इसने दीक्षा लेकर केवल चार वर्ष साधना की। फिर गलत साधना करने लगी है। उस साधना की शक्ति से इसमें ऐसा साहसिक कार्य करने की हिम्मत हुई। इसने एक कुतिया को कुँए से जल निकालकर पिलाने के लिए अपने सिर के बाल उखाड़कर रस्सी बनाई। कपड़े उतारकर उस रस्सी से बाँधकर जल निकालकर प्यासी कुतिया के जीवन की रक्षा की है। इसलिए अल्लाह अकबर ने यह करिश्मा किया है। जब राबी से पूछा गया तो यही बात बताई। जब राबी ने स्नान किया तो अब्राहिम सुल्तान अधम ने उस देवी की (मंगर) कमर को मसला यानि कमर पर लगा रक्त धोया। एक लाख अस्सी हजार पैगंबर हो चुके हैं। परमात्मा ने किसी के लिए चमत्कार नहीं किया। वे सब राबी के सामने बौने लगने लगे।

राबी का जीवन पूरा करके अगला जन्म बंसुरी नाम की लड़की गायिका हुई जो धार्मिक भजन गाती थी। मक्का में हज के समय अपना शीश काटकर अर्पित कर दिया। प्राण त्याग दिए। मुसलमान धर्म के व्यक्ति मानते हैं कि यदि किसी का शरीर मक्का में पूरा हो जाता है तो वह सीधा स्वर्ग जाता है।

राबी वाला जीव ने बसंरी वाला शरीर मक्का में त्यागकर अगले (तीसरे) जन्म में वैश्या का पापमय जीवन जीया।

अगले जन्म (चैथे जन्म) में कमाली का जीवन पाया जो शेखतकी की बेटी के रूप में जन्मी।

जब शेखतकी की लड़की तेरह वर्ष की आयु की थी, तब मृत्यु हो गई थी। उसका मानव जीवन का संस्कार शेष नहीं रहा था। पशु-पक्षी का जीवन मिलना था।

परमात्मा कबीर जी ने उसको कब्र से निकलवाकर जीवित किया। आयु वृद्धि की। अपनी बेटी बनाकर परवरिश की। सत्य साधना की दीक्षा देकर मुक्त किया।