पारख का अंग (49-55) | मंसूर अली की कथा

पारख के अंग की वाणी नं. 49-51:- गरीब, उतपति परलौ जात हैं, अनंत कोटि ब्रह्मंड। जोगजीत समझाईया, जिब उधरे कागभुसंड।।49।।गरीब, बाशिष्ट बिश्वामित्र से, आवैं जाहिं...